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Showing posts with the label जीवन दर्शन

होली की शुभकामनाएं

  होली जैसा उत्सव पृथ्वी पर खोजने से ना मिलेगा रंग गुलाल है आनंद उत्सव है तल्लीनता का मदहोशी का मस्ती का नृत्य का नाच का बड़ा सतरंगी उत्सव है | हँसी के फव्वारों का उल्लास का एक महोत्सव है | दिवाली भी उदास है होली के सामने होली की बात ही और है ऐसा नृत्य करता उत्सव पृथ्वी पर कहीं भी नहीं है  धर्म उदासी नहीं है नृत्य उत्सव है और होली इसका प्रतीक है इस दिन “ना” पर “हाँ” की विजय हुयी |  इस दिन विध्वंस पर सृजन जीता इस दिन अतीत पर वर्तमान विजयी हुआ इस दिन शक्तिशाली दिखाई पड़नें वाले पर निर्बल सा दिखाई पड़ने वाला बालक जीत गया नये की नवीन की ताजगी की विजय अतीत पर बासे पर उधार पर और उत्सव रंग का है उत्सव मस्ती का है उत्सव गीतों का है| धर्म उत्सव है उदासी नहीं  जरा गौर से देखो कितनें फूलों में कितना रंग कितने इंद्रधनुषों में उसका फैलाव है कितनी हरियाली है कैसा चारो तरफ उसका गीत चल रहा है पहाडों में पत्थरों मे पक्षियो में पृथ्वी पर आकाश में सब तरफ उसका महोत्सव है| 🌹ओशो🌹

बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनाएं

बुद्ध ने कहा मुझ पर भरोसा मत करना | मैं जो कहता हूँ उस पर इसलिए भरोसा नहीं करना कि मैं कहता हूँ | सोचना , विचारना, जीना | तुम्हारे अनुभव की कसौटी पर सही हो जाए तो सही है | भगवान बुद्ध के अंतिम वचन हैं : “अप्प दीपो भव” | अपने दिए खुद बनना | क्यूंकि तुम मेरी रौशनी में थोड़ी देर रोशन हो लोगे | फिर हमारे रास्ते अलग हो जायेंगे | मेरी रौशनी मेरे साथ होगी, तुम्हारा अँधेरा तुम्हारे साथ होगा | अपनी रौशनी खुद पैदा करो |  

सुख दुःख बाह्य वृत्तियाँ हैं शिवत्व को उपलब्ध व्यक्ति सतत जानता है- शिवरात्री की शुभकामनाएं

 शिव सूत्र में भगवान शिव कहते हैं - सुख दुख दोनों बाह्य वृत्तियाँ हैं सतत जानो 

कभी तो...

 ##बीबीसी की ब्रेकिंग न्यूज़## 3 दिन रहेगा 100% लॉकडाउन WHO के निर्देशानुसार दिनांक 29,30,31 फरवरी को  भारत में ही नहीं, समूचे विश्व में पूर्णतः लॉकडाउन रहेगा। इस दौरान चंद्र-सूर्य आदि भी अपने घर से नहीं निकलेंगे। 😁

दीपावली

 दीपावली केवल बाहर रोशनी जलाने का नाम नहीं, बल्कि अंतर को भी प्रज्ज्वलित करने का पर्व है। हमारी चेतना बाहर की ओर देखती है, अगर हम अंदर की ओर देखें तो कायाकल्प हो सकता है। अगर अंदर की रोशनी जल गई तो पूरा जीवन जगमग जगमग हो जाएगा। अपने अंतर में दीया जलाने की प्रक्रिया को ही ध्यान कहते हैं। आपका पूरा जीवन जगमग जगमग हो ऐसी शुभकामनाएं । हमारी चेतना बाहर की तरफ देखती है। यह कुछ स्वाभाविक है। बच्चा पैदा होता है तो स्वाभाविक है कि पहले बाहर देखे। जैसे ही बच्चे का जन्म होता है तो वह आंख खोलेगा, बाहर का संसार दिखाई पड़ेगा। कान खुलेंगे, बाहर की ध्वनियां सुनाई पड़ेंगी। हाथ फैलाएगा, मां को छुएगा, स्पर्श करेगा, बाहर की यात्रा शुरू हो गई। फिर प्रतिपल की जरूरतें हैं। बच्चे को भूख लगेगी तो रोएगा। भूख भीतर तो भर नहीं सकती। बाहर से भरनी पड़ेगी। प्यास लगेगी तो रोएगा। पानी तो बाहर से मांगना पड़ेगा। भीतर तो कोई जल के स्रोत नहीं हैं। बाहर में धीरे-धीरे निमज्जित होता जाएगा। धीरे-धीरे बाहर ही सब कुछ हो जाएगा। भीतर की याद ही न आएगी। तुम भूल ही जाओगे कि तुम भी हो। दो फकीर रास्ते से गुजरते थे। अचानक एक फकीर ने कहा...

जीवन का लक्ष्य क्या है?

यह मेरा सौभाग्य कि अब तक, मैं जीवन में लक्ष्यहीन हूं। मेरा भूत भविष्य न कोई, वर्तमान में चिर नवीन हूं। कोई निश्चित दिशा नहीं है, मेरी चंचल गति की बंधन। कहीं पहुंचने की न त्वरा में, आकुल व्याकुल है मेरा मन। खड़ा विश्व के चैराहे पर, अपने में ही सहज लीन हूं। मुक्त दृष्टि निरुपाधि निरंजन, मैं विमुग्ध भी उदासीन हूं। ये कितना सौभाग्य है मेरा, कि यह जीवन लक्ष्यहीन है, चलने वाले ढे़र यहां पर, मेरा जीवन पथ-विहीन है।। कोई निश्चित दिशा नहीं है, मेरी चंचल गति की बंधन, यह सारा आकाश है मेरा, उडूंं जहां चाहे मेरा मन। रहजन से है नहीं कोई भय, मेरे पास नहीं कोई धन, सता नहीं सकते हैं मुझको, करने वाले मार्ग-प्रदर्शन। क्योंकि मंजिल नहीं है कोई, अपने आप में पथिक लीन है, ये कितना सौभाग्य है मेरा, कि यह जीवन लक्ष्यहीन है।। कितने वृक्षों पर मैं सोया, उनकी कोई याद नहीं अब, मित्र मिले-बिछुड़े कब रोया, अलविदा कहकर भूल गया सब। नहीं तनिक भी फिक्र हृदय में, आगे क्या होगा कैसे कब, एक भरोसा है खुद पर बस, जब जो होगा देखूंगा तब। बिना याद और बिना आस के, सब कुछ कैसा चिर-नवीन है, ये कितना सौभाग्य है मेरा, कि यह जीवन लक्ष्यही...

गुरु पूर्णिमा

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है। गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।। कबीर

What is your TRUE power?

I have been thinking about this recently. And I thought I can share it with you... What is your TRUE power? What is YOUR true power as an individual human being? Is it money? Is it connections? Is it knowledge? Wisdom? Intelligence? All of the above are potential energies. A lot of people have them. Not everyone has a lot, but everyone has something. You, with your life experience, will definitely have some money saved up, some knowledge and experience gained through the years and some intelligence. But what's the most powerful thing of this all? NONE of the above... None of these can be of any use if we do not use it. In my life experience, I have learned a thing. And I learned that true power is always one thing: The power of Getting Started. Initiative. Starting something is the most powerful thing. Many people are more skilled than successful people. Many people are having more resources than many successful people. But the one thing that differentiates successful people from t...

जीवेषणा ही जीवित रखती है

मैं तुम्हें एक आशा दे रहा हूँ जो अभी और यहीं है । कल की चिंता क्यों करनी ? कल तो कभी आया ही नहीं । सदियों से कल तुम्हें घसीटता रहा है , और इतनी बार इस कल ने तुम्हें धोखा दिया है कि उससे चिपके रहने में अब कोई सार नजर नहीं आता । अब तो कोई मूर्ख ही कल से चिपका रह सकता है । जो अभी भी भविष्य में जी रहे हैं वे यही सिद्ध कर रहे हैं कि वे बिलकुल वेवकूफ हैं । मैं इसी क्षण को ऐसी गहन परितृप्ति बनाने की कोशिश कर रहा हूँ कि जीवेषणा की कोई जरूरत ही न रहे । जीवेषणा की जरूरत इसीलिए पड़ती है , क्योंकि तुम जीवित न हो । जीवेषणा किसी तरह तुम्हें सहारा देती रही है ; तुम नीचे की ओर फिसलते रहते हो और जीवेषणा तुम्हें उठाकर खड़ा करती है । मैं तुम्हें कोई नई जीवेषणा देने की कोशिश नहीं कर सका हूँ , मैं तुम्हें जीना सिखा सकता हूँ , बिना किसी इच्छा के , और आनंदित होकर जीने की क्षमता सबमें है । यह कल की आशा है जो तुम्हारे आज को विषाक्त करती रहती है । बीते हुए कल को भी भूल जाओ , आने वाले कल को भी भूल जाओ । आज ही सब कुछ है , आज ही हमारा है । इसी का हम उत्सव मनाएँ , और इसी को जीएँ । और इसको जीने से ही तुम इतने मजबूत ...

चाह गई चिंता मिटी-रहीम

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह। जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह।।  

इम्यूनिटी बढ़ाकर ही वायरस से लड़ सकते हैं

प्रतिरक्षा तंत्र (इम्युनिटी) मनुष्य को प्राप्त वरदान है ।  हर परिस्थिति में जीवित रहने योग्य बनाता है । प्रतिरक्षा प्रणाली ही बीमारियों से दूर रखती है ।  कहावत है "कांटा ही कांटे को निकालता है" साँप के जहर की दवा सांप के जहर से ही बनाई जाती है ।  इसी सिद्धांत पर पर ही सभी बीमारियों के टीके काम करते हैं ।  इम्यूनिटी कैसे बढ़ाएं ?....जानें..

काम शुरू करने के बाद जोश ठंडा पड़ जाता है, क्या करें?

ये बहुत ही कॉमन प्रॉब्लम है । काम बड़े जोश के साथ शुरू करते हैं पर कुछ समय बाद सारा जोश चला जाता है । किसी भी काम की पूर्णता संकल्प शक्ति पर निर्भर करती है । संकल्प शक्ति कोई जादू नहीं जो जब चाहे तब बड़ा लो । किसी भी काम की पूर्णता हेतु संकल्प निम्न बातों पर निर्भर करता है - 1. साहस - अतीत से मुक्ति का साहस, भविष्य की चुनोतियों को स्वीकार करने का साहस । अभी तक जिस पैटर्न पर जीवन चल रहा था उसमें कुछ नए करने का साहस चाहिए और नया करेंगे तो नई चुनोतियाँ होंगी उन्हें स्वीकार करने का साहस चाहिए । 2. संतुलन - दिल, दिमाग और अंतःकरण का संतुलन होगा तो अपने आप का पूर्ण सहयोग प्राप्त होगा । वही काम करें जिसे करने की इजाजत हृदय, मश्तिष्क और आत्मा दें । वही काम सफल होता है जो दिल को भाता हो, तर्क पर खरा उतरता हो और अंतःकरण स्वीकार करता हो । दिल - भावनाओं का केंद्र दिमाग - तर्कशक्ति का केंद्र अंतःकरण - सही गलत का निर्णय करने का केंद्र 3. संकल्पना - सकारात्मक संकल्पना करनी होगी । मानो कि हो ही गया जो मैने चाहा । 4. शेयरिंग - बड़ा काम अकेले संभव नहीं है । अपने मन की बात लोंगो को बताओ और अपनी टीम का चयन कर...

असफलता नाम की कोई चीज नहीं होती - सद्गुरु

सफलता और विफलता आपके जीवन में आने वाले धन की मात्रा पर निर्भर नहीं होती! सफलता और विफलता उस पहचान पर निर्भर नहीं जो आप दुनिया में पा रहे हैं ! विफलता जैसी कोई चीज नहीं है विफलता एक विचार है क्योंकि सफलता भी एक मूर्खतापूर्ण विचार है दुनिया को बदलने की कोशिश करने की बजाय अपना विचार बदलिये  सफलता और असफलता का अपना विचार ! हालात जो भी हों अगर आप जीवित हैं तो सफल हैं? और अगर ऐसा नहीं तो आप जीवन का महत्व नही जानते पूरी बात सद्गुरु से सुनिए.......

क्या है आत्मविश्वास ? क्या हम सही समझते हैं?

आत्मविश्वास हम जब भी जीवन का गहराई से विचार करते है  समस्याओं और संकटों का मूल कारण ढूंढने का प्रयास करते हैं बार-बार एक निष्कर्ष एक नतीजा सामने आता है हमारी अधिकतर समस्याओं का कारण है आत्मविश्वास का ना होना ईर्ष्या भी वहीं से जन्म लेती है, क्रोध भी,  आलस्य भी और लालसा भी आत्मविश्वास ही जीवन में सुख और सफलता प्राप्त करने की चाबी है किंतु क्या हम आत्मविश्वास का अर्थ समझते हैं? कोई भी कार्य जब हमारे समक्ष आता है तो हम निश्चय करते हैं कि इस कार्य में हम अवश्य सफल होंगे क्या यह आत्मविश्वास है? हमारे सिवा अन्य कोई सफल हो ही नहीं सकता, ऐसा भी हम मान लेते हैं क्या यह आत्मविश्वास है? आत्मविश्वास क्या अहंकार का ही रूप है? किंतु अहंकार तो सदा संघर्ष को जन्म देता है तो क्या आत्मविश्वास संघर्ष का कारण है? जब हम मानते हैं कि हम अवश्य सफल होंगे तो हम उसे आत्मविश्वास कहते हैं किस आधार पर कहते हैं कि हम सफल होंगे? हमारे अनुभव के आधार पर अथवा प्राप्त किए हुए ज्ञान के आधार पर किंतु अनुभव तो बीते हुए कल का सत्य है आने वाले समय में वह सत्य सिद्ध हो यह आवश्यक नहीं ज्ञान की तो कोई सीमा ही नहीं कैसे...

सही निर्णय कैसे लें?

हम बात कर रहे हैं हीनता की इसे विस्तार से समझने के लिए एक कहानी सुनाता हूँ एक बार पिता पुत्र दोनों दूर के शहर में अपना गधा बेचने जा रहे थे। मार्ग में किसी ने कहा अरे! भाई इन तीन गधों को देखो । जब गधा साथ है तो पिता-पुत्र पैदल क्यों चल रहे हैं? ये सुनकर बाप ने अपने बेटे को गधे पर बिठा दिया । कुछ आगे जाकर किसी ने कहा "कमाल का बेटा है भाई अपने बूढ़े बाप को पैदल चला रहा है" तो बेटा गधे से उतर गया और बाप को बैठा दिया । कुछ दूर जाकर किसी की बात सुनी 'कमाल का बाप है बेटा को पैदल चला रहा है' यह सुनकर बाप-बेटे दोनों गधे पर बैठ गए । फिर किसी ने कहा बेचारे गधे की तो फिकर ही नहीं यह बात सुनकर दोनों ने तय किया कि हम ही गधे को उठा लेते हैं । जब दोनों ने गधे को उठाने की कोशिश की तो गधे में भड़ककर लात मारी, उनकी पश्लियाँ तोड़ दी और भाग गया । हीन भावना से बंधे लोग क्या ऐसे नहीं जीते हमारे सारे निर्णय लोंगों की धारणाओं पर आधारित होते हैं हम यही विचार करते हुए जीवन बिता देते है  की समाज क्या कहेगा? अपने जीवन का प्रवाह लोंगों की बातें सुनकर बदलते रहते हैं ऐसी हीन भावना हमें सफल नही होनी देत...

कोई व्यक्ति दूसरे का अपमान क्यों करता है?

कोई व्यक्ति दूसरे का अपमान क्यों करता है? क्या आपने कभी विचार किया है? वैसे तो हम भी बिना कारण बहुतों का अपमान करते हैं हमारा अपमान भी बहुत बार होता है संसार का सारा व्यवहार एक दूसरे का अपमान करने पर टिका है जैसे पति अपनी पत्नी का अपमान करता है पिता अपनी संतानों का अपमान करता है नौकरी देने वाला अपने नौकर का अपमान करता है अर्थात जो भी बलबान है, निर्बल का अपमान करता है यदि हम शक्तिमान हैं तो अपमान के बदले लड़ाई करते हैं और यदि लड़ने की शक्ति नहीं होती तो अपमान सह लेते हैं स्वयं को निर्बल और असहाय मान लेते हैं छोटे होने का अहसास होता है ऐसा प्रतीत होता है जैसे हमारी आत्मा कुचली गई हो किन्तु कोई किसी का अपमान क्यों करता है? हम विचार कर रहे थे कि जब अपमान होता है तो मनुष्य को अपनी निर्बलता का अहसास होता है निर्बलता का बोध मनुष्य को कुचल देता है वो अधिक से अधिक निर्बल बन जाता है अत्याचार सहने की आदत सी बन जाती है आत्मविश्वास का नाश हो जाता है और जब आत्मविश्वास नहीं होता  तो मनुष्य शराब और जुये जैसे व्यसनों में सुख ढूंढता है मन का रोगी बन जाता है आखिर किसी भी मनुष्य की ऐसी दुर्गति कोई क्यों...

सबसे प्यारा कौन?

बेटी के लिए सबसे प्यारा कौन होता है? अदिति से सुनिए चंदा ने पूंछा तारों से  तारों ने पूंछा हजारों से सबसे प्यारा कौन है?

भगवान बुद्ध के पांच महत्वपूर्ण संदेश - बुद्ध पूर्णिमा

भगवान बुद्ध ने जीवन को सही मायने में जीना सिखाया । उनकी शिक्षाओं को जीवन में उतारकर जीवन को आनंदमय बना सकते हैं । बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर उनकी प्रमुख देशनाएँ - 1 . भविष्य के बारे में मत सोचो और अतीत में मत उलझो सिर्फ वर्तमान पर ध्यान दो . जीवन में खुश रहने का यही एक सही रास्ता है .  2 . खुशियां हमेशा बांटने से बढ़ती हैं जैसे कि एक जलते हुए दीये से हजारों दीपक रोशन किए जा सकते है , फिर भी उस दीये की रोशनी कम नहीं होती .  3 . आप चाहें जितनी भी अच्छी किताबें पढ़ लें , कितने भी अच्छे शब्द सुन लें , लेकिन जब तक आप उनको अपने जीवन में नहीं अपनाते तब तक उसका कोई फायदा नहीं .  4 . हमेशा क्रोधित रहना , ठीक उसी तरह है जैसे जलते हुए कोयले को किसी दूसरे व्यक्ति पर फेंकने की इच्छा से खुद पकड़ कर रखना . यह क्रोध सबसे पहले आपको ही जलाता है .  5 . क्रोधित होकर हजारों गलत शब्द बोलने से अच्छा , मौन का वह एक शब्द है जो जीवन में शांति लाता है .

स्वच्छता अभियान

स्वच्छता आदित्य एवं अदिति

बच्चे ज्यादा समझदार या बड़े ?

ये पेंटिंग बच्चे ने बनाई है  अब बताइये ..... बच्चे ज्यादा समझदार या बड़े ? बच्चे बड़े व्यक्ति व्यक्ति पर निर्भर करता है Created with QuizMaker