ताकत होती है विध्वंस से अधिक निर्माण में निर्माण पलता है विध्वंस के गर्भ में ही खेल चलता रहता है सृष्टि में दोनों का अनवरत नहीं महसूस करनी चाहिए असहजता ऐसे समय में हांलांकि दुःख देता है विध्वंस अक्सर कभी- कभी लकवा मार देता है मनुष्य के साहस को भी लेकिन काम लेना चाहिए धैर्य से नियंत्रित करना चाहिए मन के घोड़े को विवेक के रज्जू से पांच सौ वर्षों के वनवास की पूरी हो गई अवधि हर लोगों ने माना अस्तित्व को मर्यादा पुरुषोत्तम राम के स्थापित होंगे अपने नियत स्थान पर पराभव हुआ छलियों का निष्प्रभावी हो जाती हैं मायावी शक्तियां कुछ चमत्कारी प्रदर्शन के बाद सेंकते रहते हैं निरंतर सियासी रोटियां विध्वंस के तवे पर कुछ वंशवादी नहीं बची खाने लायक किसी के गिर गए औधें मुंह आई० सी० यू० में हैं आज ज़मीन अपनी ढूंढ़नी होगी उन्हें कि कहां खड़े हैं हम चिंतन- मनन करना होगा कि घर- घर में हैं सबके राम घर- घर के हैं राम सबके बस इंतजार था वक्त का लोहा मान गए सिकंदर और सुकरात दोनों नहीं होता वक्त, किसी का हमेशा जीवन में उतन
Principal Exam, मिलकर करते हैं तैयारी