कोई व्यक्ति दूसरे का अपमान क्यों करता है?
क्या आपने कभी विचार किया है?
वैसे तो हम भी बिना कारण बहुतों का अपमान करते हैं
हमारा अपमान भी बहुत बार होता है
संसार का सारा व्यवहार एक दूसरे का अपमान करने पर टिका है
जैसे पति अपनी पत्नी का अपमान करता है
पिता अपनी संतानों का अपमान करता है
नौकरी देने वाला अपने नौकर का अपमान करता है
अर्थात जो भी बलबान है, निर्बल का अपमान करता है
यदि हम शक्तिमान हैं तो अपमान के बदले लड़ाई करते हैं
और यदि लड़ने की शक्ति नहीं होती तो अपमान सह लेते हैं
स्वयं को निर्बल और असहाय मान लेते हैं
छोटे होने का अहसास होता है
ऐसा प्रतीत होता है जैसे हमारी आत्मा कुचली गई हो
किन्तु कोई किसी का अपमान क्यों करता है?
हम विचार कर रहे थे कि जब अपमान होता है
तो मनुष्य को अपनी निर्बलता का अहसास होता है
निर्बलता का बोध मनुष्य को कुचल देता है
वो अधिक से अधिक निर्बल बन जाता है
अत्याचार सहने की आदत सी बन जाती है
आत्मविश्वास का नाश हो जाता है
और जब आत्मविश्वास नहीं होता 
तो मनुष्य शराब और जुये जैसे व्यसनों में सुख ढूंढता है
मन का रोगी बन जाता है
आखिर किसी भी मनुष्य की ऐसी दुर्गति कोई क्यों करता है
अपमान करने वाला वास्ताव में क्या सिद्ध करना चाहता है?
कभी गहराई से विचार किया है!
वास्तव में हम किसी का अपमान करते हैं उसकी निर्बलता सिद्ध करने के लिए
ये बताने के लिए की हम अधिक शक्तिमान हैं
अर्थात अपमान करने वाला स्वयं को शक्तिमान बलवान सिद्ध करने का प्रयास कर रहा है
अपमान करने वाला हकीकत में अपनी शक्ति से आश्वस्त नहीं है
उसे अपनी शक्ति पर भरोसा नहीं है
दूसरों को चुनौती देकर अपनी शक्ति पर विश्वास प्राप्त करने का प्रयास करता है
क्या ये सच नहीं है?
जब हम किसी का अपमान करते हैं 
तो हम इतना ही प्रकट करते हैं
कि हमें अपने बल पर भरोसा नहीं
संसार एक अबिरल संघर्ष प्रतीत होता है
कभी न रुकने वाली जंग सी दिखाई देती है
हम अपने निकट आने वाले सभी को प्रतिद्वंदी मानते हैं
फिर वो पति या पत्नि ही क्यों न हो
हमें निरंतर लगता है हमें अपनी शक्ति सिद्ध करनी होगी
अन्यथा हमारा शोषण होगा
हम किसी के गुलाम बन जाएंगे
किन्तु क्या हमने कभी विचार किया है?
की दूसरों को प्रतिद्वंदी या दुश्मन मानने के बदले
हमारी सहायता करने वाले सहयोगी मान लें
अर्थात दूसरे व्यक्ति को प्रेम करें
तो उसका अपमान करना आवश्यक ही नहीं होगा
किन्तु प्रेम करने के लिए आत्मविश्वास आवश्यक है
जिसे अपनी शक्ति पर विश्वास नहीं वो प्रेम कर ही नहीं सकता
अर्थात जिसका हृदय आत्मविश्वास से भरा होता है
न वो अपमान करता है न अपमान को स्वीकार करता है
क्या ये सत्य नहीं?
इस तत्थ्य पर विचार अवश्य कीजियेगा 
अति सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबिल्कुल सत्य लेख है सर।
ReplyDeleteThank you sir
ReplyDeleteGood morning sir Aapp ne bilkul sahi Kaha hai kisise kuch kehane se pehale ek baar khud se feel Karna chaiyen ye knowledge dene ke liye Thank u so much sir
ReplyDeleteसही उपाय बताया सर जी🙏
ReplyDeleteसही कहा सर....👌👌
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