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Showing posts from June, 2021

अहं

  अहं एक रोग है इलाज न हो समय पर इसका तो अहं का ज़हर क्षत-विक्षत कर देता है शरीर के सारे अवयव को बहुत बड़ा बाधक है यह आध्यात्मिक उत्कर्ष में अहं निर्माण करता है एक प्रशस्त पथ काम , क्रोध और लोभ का अप्रतिम परिचायक हैं रावण और कंस इस बात के शरीर रूपी दरख़्त के शीर्ष को छूती है जब अहं की लता तो भहराकर गिरने से नहीं कोई रोक सकता है उस दरख़्त को तो क्या यह मान लिया जाय कि अहं एक हाला है जिसका नशा बुद्धि और विवेक दोनों की धीमी हत्या करता है और नहीं प्रशांत होने देता है हमारे काम क्रोध और लोभ के ज्वालामुखी को     सम्पूर्णानंद मिश्र शिवपुर वाराणसी

लौटते वक़्त श्मशान से

    लौट रहा था श्मशान से गांव के जग्गू दादा का शवदाह करके कुछ रुआंसा था क्योंकि जल गया था एक विचार जिसके भार को ढोते वक़्त झुक जाते थे दादा के कंधे आंखों से नीर नहीं बहते थे रक्त मार सहते हुए अपनों की दादा ने प्रेम - फूल को नफ़रत की माटी में उगाया था वे जानते थे कि बिना रक्त जलाए नहीं मिल सकती एक अदद रोशनी विचारों की आज जल गई दरअसल शवदाह के साथ- साथ विचारों की बाती भी   सम्पूर्णानंद मिश्र शिवपुर वाराणसी 7458994874

ख़ामोश

    ख़ामोश रहती हैं जड़ें फड़फड़ाती नहीं हैं जहां फड़फड़ाहट है वहां जीवन नहीं है चाहे वृक्ष हो या मनुष्य जिसकी सोर भूगर्भीय संबंधों की हवा का पान नहीं करती वह शीघ्र मर जाती है चाहे परिवार हो या प्रकृति सारी पीड़ाएं पीती हैं नग्न आंखों से इसीलिए प्रकृति क्योंकि उसे परवाह है अपने आत्मीयजन की। समय- असमय वह क्रोध की भट्ठी बुझाए रखती है क्योंकि वह जानती है विनाश की ड्योढ़ी तक जाता है क्रोध का पथ   सम्पूर्णानंद मिश्र शिवपुर वाराणसी 7458994874