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Showing posts from October, 2016

मेरे बचपन के दिन-पाठ योजना

पाठ योजना कक्षा – नौवीं विषय - हिंदी पाठ- मेरे बचपन के दिन समयावधि –  पाठ का संक्षिप्त परिचय – प्रस्तुत संस्मरण में महादेवी जी ने अपने बचपन के उन दिनों को स्मृति के सहारे लिखा है जब वे विद्यालय में पढ़ रही थीं। इस अंश में लड़कियों के प्रति सामाजिक रवैये , विद्यालय की सहपाठिनों , छात्रावास के जीवन और स्वतंत्रता आंदोलन के प्रसंगों का बहुत ही सजीव वर्णन है। लेखिका अपने बचपन के दिनों को याद कर कहती है कि वे परिवार में पहली लड़की पैदा हुईं थीं। घर में हिन्दी का कोई वातावरण नहीं था लेकिन माँ ने उसे संस्कृत , हिन्दी , अंगेरज़ी आदि की शिक्षा दी। फिर मिशन स्कूल में जाने पर उनकी मुलाकात सुभद्रा कुमारी चौहान से हुई। उनके छात्रावास में विभिन्न स्थानों से आए बच्चों में एकता एवं सहानुभुति की भावना थी। वे कविता भी लिखती थी। कविता –पाठ में उन्हें हमेशा प्रथम पुरस्कार ही मिलता था। एक बार उन्होंने पुरस्कार में मिले चाँदी के कटोरे को दानस्वरूप गाँधी जी को दे दिया। उनके घर के पास रहने वाले नवाब साहब के परिवार से उनके बड़े अच्छे संबंध थे। नवाब साहब ने ही उनके छोटे भाई का नामकरण किया था। उस स

मेघ आए -पाठ योजना

पाठ योजना कक्षा – नौवीं विषय - हिंदी पाठ- मेघ आए समयावधि –  पाठ का संक्षिप्त परिचय – इस कविता में मेघों के आने की तुलना सजकर आए प्रवासी अतिथि दामाद) से की है। ग्रामीण संस्कृति में दामाद के आने पर उल्लास का जो वातावरण बनता है , मेघों के आने का वर्णन करते हुए कवि ने उसी उल्लास को दिखाया है। कवि ने मेघों की तुलना सजकर आए अतिथि (दामाद) से करते हुए कहा है कि मेघ शहर से आए अतिथि की भाँति सज-धज कर आए हैं। जिस तरह मेहमान के आने पर गाँव के लड़के-लड़कियाँ भाग कर सबको इसकी सूचना देते हैं , उसी तरह मेघ के आने की सूचना देने के लिए हवा तेज़ गति से बहने लगी है। मेहमान को देखने के लिए जिस तरह लोग खिड़की-दरवाजों से झाँकते हैं , उसी तरह मेघों के दर्शन के लिए भी लोग उत्सुकतापूर्वक खिड़की-दरवाजों से बाहर आकाश की तरफ़ देखने लगे हैं। इस तरह छोटे-बड़े , काले-भूरे-सफेद रंग के मेघ अपने दल-बल के साथ आकाश में ऐसे छा गए हैं मानो कोई शहरी मेहमान सज-धज कर गाँव में आया हो। जिस तरह   मेहमान के आने पर गाँव के वृद्ध आगे आकर और हाथ जोड़कर अतिथि का आदर सत्कार करते हैं तथा पत्नी दीवार   की ओट लेकर देखती हैं   उ

प्रेमचंद के फ़टे जूते -पाठ योजना

पाठ योजना कक्षा – नौवीं विषय - हिंदी पाठ- प्रेमचंद के फटे जूते समयावधि – पाठ का संक्षिप्त परिचय – प्रस्तुत लेख में परसाई जी ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी के साथ एक रचनाकार की अंतर्भेदी सामाजिक दॄष्टि का विवेचन करते हुए आज की दिखावे की प्रवृत्ति एवं अवसरवादिता पर व्यंग्य किया है। लेखक प्रेमचंद के फटे जूते को देखकर आश्चर्यचकित होकर कहता है कि फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी ? जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अंगुली बाहर निकल आई है। फिर भी चेहरे पर बड़ी बेपरवाही और विश्वास है। यह मुस्कान नहीं , इसमें उपहास है , व्यंग्य है। वह आगे कहता है कि इससे अच्छा होता कि तुम फोटो ही नहीं खिंचाते। तुम फोटो का महत्व नहीं समझते । लोग तो ऐसे कमों के लिए जूते क्या कपड़े और बीवी तक माँग लेते हैं।एक टोपी तक नहीं पहनी। टोपी तो आठ आने में मिल जाती है। तुम महान कथाकार , उपन्यास-सम्राट , युग-प्रवर्तक , जाने क्या-क्या कहलाते थे , मगर फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है। फिर लेखक अपनी बात करता है कि मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं   है , मगर अंगुली बाहर नहीं निकलती पर

नीलकंठ (रेखाचित्र) कक्षा-7 अभ्यास

महादेवी वर्मा  1. मोर-मोरनी के नाम किस आधार पर रखे गए? उत्तर नीली गर्दन होने के कारण मोर का नाम नीलकंठ रखा गया और मोरनी सदा मोर की छाया के समान उसके साथ रहती इसलिए उसका नाम राधा रखा गया। 2. जाली के बड़े घर में पहुँचने पर मोर के बच्चों का किस प्रकार स्वागत हुआ? उत्तर जाली के बड़े घर में पहुँचने पर मोर के बच्चों का उसी तरह स्वागत हुआ जैसा नववधू के आगमन पर परिवार में होता है। लक्का कबूतर नाचना छोड़ उनके चारों ओर घूम-घूम कर गुटरगूं-गुटरगूं की रागिनी अलापने लगे, बड़े खरगोश सभ्य सभासदों के समान क्रम से बैठकर उनका निरीक्षण करने लगे, छोटे खरगोश उनके चारों ओर उछलकूद मचाने लगे और तोते एक आँख बंद करके उनका परीक्षण करने लगे। 3. लेखिका को नीलकंठ की कौन-कौन सी चेष्टाएँ बहुत भाती थीं? उत्तर नीलकंठ देखने में बहुत सुंदर था और लेखिका को उसकी हर चेष्टाएँ आकर्षक लगती थीं परन्तु कुछ चेष्टाएँ उन्हें बहुत भाती थीं जैसे - • मेघों की गर्जन ताल पर उसका इंद्रधनुष के गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बनाकर तन्मय नृत्य करना।  • लेखिका के हाथों से हौले-हौले चने उठाकर खाते समय उसकी चेष्टाएँ हँसी और

खान पान की बदलती तस्वीर कक्षा 7 अभ्यास

1. खानपान की मिश्रित संस्कृति से लेखक का क्या मतलब है? अपने घर के उदाहरण देकर इसकी व्याख्या करें। उत्तर खानपान की मिश्रित संस्कृति से लेखक का मतलब विभिन्न प्रदेशों के खान-पान के मिश्रित रूप से है। आज हमें एक ही घर में हमें कई प्रान्तों के खाने देखने के लिए मिल जाते हैं। उदाहरण के तौर पर मेरा घर दिल्ली में है जहाँ पराठे आदि ज्यादा बनते हैं परन्तु खानपान की मिश्रित संस्कृति की वजह से साम्भर-डोसा, इडली जो की दक्षिण भारत का प्रमुख भोजन है वो भी बनता है। (आप अपने घर के भोजन को भी उदाहरण के लिए दे सकते हैं। अगर आप उत्तर भारतीय हैं तो आपके घर में दक्षिण भारतीय भोजन भी बनता होगा और दक्षिण भारतीय के घरों में उत्तर भारत के भोजन भी बनते हैं।) 2. खानपान में बदलाव के कौन से फ़ायदे हैं? फिर लेखक इस बदलाव को लेकर चिंतित क्यों है? उत्तर खानपान में बदलाव के कई फायदे हैं जैसे हमारी खाने में रूचि बनी रहती है, देश-विदेश के व्यंजन पता चलते हैं, इससे भारत की राष्ट्रीय एकता भी बनी रहती है। साथ ही इससे जल्दी बनने वाले खानों का उपलब्ध होने लगी हैं जिससे समय की भी बचत होती है। हम अपने स्वास्थ्य औ

एक तिनका कक्षा 7 अभ्यास

कविता  - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' 1. नीचे दी गई कविता की पंक्तियों को सामान्य वाक्य में बदलिए।  (क) एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा - (ख) लाल होकर आँख भी दुखने लगी - (ग) ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी - (घ) जब किसी ढब से निकल तिनका गया - उत्तर (क) एक दिन जब मैं अपनी छत की मुंडेर पर खड़ा था। (ख) आँख में तिनका चले जाने के कारण आँख लाल होकर दुखने लगी। (ग) बेचारी ऐंठ दबे पावों भागी। (घ) किसी तरीके से आँख से तिनका निकाला गया। 2. 'एक तिनका' कविता में किस घटना की चर्चा की गई है, जिससे घमंड नहीं करने का संदेश मिलता है? उत्तर 'एक तिनका' कविता में कवि ने उस दिन की घटना की चर्चा की है जब उसे अपने ऊपर घमंड हो गया और वह अपने को श्रेष्ठ समझने लगा। तभी एक तिनका उसके आँख में घुस गया जिससे उसकी आँखे लाल हो गयीं। बड़े प्रयास करने पर जब तिनका निकला तब लेखक को समझ आई की उसके घमंड को चूर करने के लिए तिनका है। इससे घटना से यह संदेश मिलता है की हमें घमंड नही करना चाहिए। 3. आँख में तिनका पड़ने के बाद घमंडी की क्या दशा हुई? उत्तर आँख में तिनका पड़ने के बाद घमंडी की आँखे लाल हो गयीं और दर्

कंचा कक्षा 7 अभ्यास

1. कंचे जब जार से निकलकर अप्पू के मन की कल्पना में समा जाते हैं, तब क्या होता है? उत्तर कंचे जब जार से निकलकर अप्पू के मन की कल्पना में समा जाते हैं तब वह उनकी ओर पूरी तरह से सम्मोहित हो जाता है। कंचों का जार का आकार आसमान के समान बहुत ऊँचा हो गया है और वह उसके भीतर अकेला है। वह चारों ओर बिखरे हुए कंचों से मजे से खेल रहा था। मास्टर जी कक्षा में पाठ "रेलगाड़ी" का पढ़ा रहे थे। उसे मास्टरजी द्वारा बनाया गया बॉयलर भी कंचे का जार ही नज़र आता है। इस चक्कर में मास्टर जी से डाँट भी खाई लेकिन उसके दिमाग में केवल कंचों का खेल चल रहा था।  2. दुकानदार और ड्राइवर के सामने अप्पू की क्या स्थिति है? वे दोनों उसको देखकर पहले परेशान होते हैं, फ़िर हँसतें हैं। कारण बताइए। उत्तर दूकानदार ड्राइवर के सामने अप्पू एक छोटा चंचल बालक है। पहले तो दुकानदार उससे परेशान होता है क्योंकि वह कंचों को केवल देख रहा है कहीं उससे जार फूट ना जाए परन्तु अप्पू ने कंचे खरीद लिए तो वह हँस पड़ा। जब अप्पू के कंचे सड़क पर बिखर जाते हैं तो तेज़ रफ़्तार से आती कार का ड्राइवर यह देखकर परेशान हो जाता है कि वह दुर्घटना की परवाह कि