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Showing posts from April, 2020

Online Quiz class 10 hindi आत्मकथ्य

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Online Quiz class 10 hindi उत्साह, अट नहीं रही

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Online Quiz class 10 hindi यह दंतुरित मुसकान, फसल

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Online Quiz class 10 hindi छाया मत छूना

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इतिहास लिखता रहा

कुछ समय निकाल कर       हंस लूंगा   चाहे जितनी   पाबंदियां लगा दो   मुसीबतों का पहाड़   ही रास्ते में बिछा दो   केवल मुट्ठी भर    एकांत मुझे चाहिए !     मैं हंस लूंगा    मेरे सुख में सदा    तुम ज़हर घोलते रहे हो           और           मुझे हतोत्साहित करने के लिए तेज़ाबी बोल बोलते रहे   सुखद मेरे लिए यह रहा कि मेरी ज़िन्दगी के मुंडेर पर बैठकर कौआ कांव-कांव बोलता रहा मुझे सुखद आश्चर्यजनित    संदेश देता रहा    क्या फ़र्क पड़ा ! मुझे नीचा लज्जित दिखाने की हर रंगीन ख्व़ाहिशों का स्वप्न            भी   तुम्हारा टूट गया  भूने हुए पापड़ की तरह ।    क्या हुआ मैं निरंतर हंसता रहा ! पाबदियां टूटती रही। हंसी को उदासी में  परिणत करने के लिए मेरे ज़िदगी के मुखमंडल पर  चिंताओं की लकीरें  भी खींच कर देख ली तुमने     क्या हुआ! मैं वहां भी हंसता रहा तुम्हारी लकीरें मिटती रही          और मैं अपनी ज़िंदगी में हंसी का  एक नया इतिहास लिखता रहा!     ‌ सम्पूर्णानंद मिश्र

नफरत की आग

फैल रहा है धुंआ ,अफ़वाहों का इस शहर में , नफरत की ये आग, दिल मे लगाई किसने है। झुलस रहा है तन मन, हर शख्श का इस आग में,  दे हवा ,चिंगारी को शोला रूप ,भड़काई किसने है। उठा रखे है जाहिलो ने ,पत्थर अपने हाथों में , बर्बादी का ये सबक ,उन्हें सिखाई किसने है। सच क्या है, क्या है झूठ, खबर आई कहाँ से है, इनसे बेख़बर , खबर को अफवाह बनाई किसने है। या खुदा रहम कर ,  उन  नासमझ बन्दों पर । फ़र्ज़ की राह से लोगो को ,भटकाई जिसने है ।                        बी के दीक्षित " बृज"

पिता का दर्द

नाजों से पाला था उसको , वो मेरी आँखों की तारा थी, मां के सुख-दुख की साथी थी, बुढ़ापे वो एक सहारा थी । चोट लगे उसके तन पर तो, दर्द हमे भी होता था । पीड़ा में देख सुता को निज ,बेचैन रात को सोता था । कुछ ख्वाब सजाये थे उसने , अपनी नीली आंखों में । जैसे सजती कोमल कलियां ,पेड़ो के हर शाखों में। उसे जला डाला तुमने , वासना की अपनी ज्वाला में । फिर फेंक दिया तन उसका तुमने, भड़की शोलो के ज्वाला में। अहसास नही दर्दो का तुमको,जिसको उसने झेला था। हिरनी सी डरी हुई बाला को ,जब जब तुमने छेड़ा था। तेरी कुत्सित अभिलाषा ने ,उंसका जीना मुहाल किया। तेरी खोटी नजरों के कारण , बाहर चलना बेहाल हुआ । अपमान दंश सी तेरी फब्ती, विष बाण से लगते थे दिल मे । अट्टाहास सी तेरी हंसी , शूलों से चुभते थे दिल मे । जो कृत्य किया तुमने उससे , माँ का दूध लजाया है । प्रेम पिता का, स्नेह बहन का , उन सबको तूने , गवाया है। संस्कार से खाली झोली तेरी ,मर्यादा का भी अहसास नही । मात-पिता, कुल, गोत्र, वंश का , कर दिया है सत्यानाश सही। हे ईश्वर इन्हें सद्बुद्धि दो, दिल का मैल निकल जाए। म

अब मुझे मत मारो!

रावण ने राम से कहा  मुझे अब मत मारो! माना कि त्रेता में सीता- हरण करने का मैं अपराधी था अपराध की सजा मिलनी चाहिए  लेकिन राम कितनी बार!  हर बार मैं मर रहा हूं  घुट- घुटकर  जी रहा हूं  क्या मैं निरंतर इसी तरह से जलाया जाऊंगा? सूली पर लटकाया जाऊंगा  लोग कब तक तमाशा देखेंगे  अब मुझे बख्श़ दो!  अरे! उस देवी को तो   मैंने छुआ तक नहीं  एक तरफ़ मैं उसे डराता था  तो दूसरी तरफ़  त्रिजटा द्वारा समझाता था  अब‌ मुझे मुक्त कर दो राम! असत्य को सत्य के हथौड़े ने  पीट- पीट कर कुंदन  बना दिया  तुम्हारे सान्निध्य ने मेरे भाल पर  रामत्व का चंदन लगा दिया  सभ्यता एवं संस्कृति का  नया पाठ पढ़ा दिया  लेकिन राम वही शक्ति  तुम आज दिखा दो  इस कलियुग में भी  अपना प्रभाव दिखा दो बहू- बेटियों की मर्यादा  क्या ऐसे ही नीलाम होगी  प्रियंका रेड्डी की हत्या  सरेआम होगी ! तुम कहां हो राम! एक अभिमंत्रित बाण  इन पर भी चला दो  मुझे मुक्त कर दो राम  मुझे अब मत मारो

सब बीत जाएगा...

ए मुसाफ़िर सब बीत जायेगा  ये वक़्त कभी ठहरा ही नहीं ! रफ्त़ा- रफ़्ता निकल जायेगा  उजाले कब तलक क़ैद रहेंगे देखना ! कल सुबह अपनी रिहाई के गीत ज़रूर गायेंगे   माना कि आज सारे जुगनूं तम से संधि कर  उजालों को चिढ़ा रहे हैं  जब अंधकार की छाती चीरकर कल रश्मियां विकीर्ण हो जायेंगी  तो इन्हीं में से कुछ जुगनूं आफ़ताब से भी हाथ मिलायेंगे ए मुसाफ़िर सब बीत जायेगा ये वक्त कभी ठहरा ही नहीं!  आज आंजनेय  के बध के लिए  बिसात बिछाई जा रही है  एक और सुरसा की ज़िंदगी  दांव पर लगाई जा रही है  लेकिन झूठ के वक्ष को चीरकर  जब  सत्य का सूर्य कल उदित होगा  तो देखना!  यही अंधेरे  दिन में ही दिनकर  से हाथ मिलायेंगे  ए मुसाफ़िर सब बीत जायेगा  ये वक्त कभी ठहरा ही नहीं! रचनाकार- डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र 7458994874 mishrasampurna906@gmail.com

हरिवंशराय बच्चन जी की कविता (आत्मपरिचय, एक गीत) के अभ्यास प्रश्न

कक्षा - 12       विषय - हिंदी  पुस्तक- आरोह भाग 2(काव्य खण्ड)  कविता-1.हरिवंशरायबच्चन     (आत्मपरिचय, एक गीत) पाठ्य पुस्तक से अभ्यास प्रश्न कविता के साथ  प्रश्न 1-  कविता एक ओर जग -जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर " मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ"- विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है? उत्तर1- कवि इन दोनों विपरीत कथनों के माध्यम से यह कहना चाहते है कि कवि को संसार और ज़िन्दगी से दुख मिला है अर्थात उनका जीवन दुख के कारण बोझ- सा हो गया है। उनकी पहली पत्नी की टी बी की बीमारी से मृत्यु हो जाने से कवि निराश हो गए थे।इसके बावजूद उन्हें अपनी जिंदगी या दुनिया से कोई शिकायत नही थी।वे किसी की परवाह किये बिना अपने दर्द को गीतों के रूप में प्रकट कर संसार को प्रेरित कर रहे हैं। प्रश्न 2-" जहां पर दाना रहते हैं,वहीं नादान भी होते हैं"- कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा? उत्तर 2- कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि कवि  ने देखा है कि संसार के लोग अक्सर धन- दौलत, मान -सम्मान, सुख- सुविधा आदि के लालच में पड़ कर गलतियां कर बैठते हैं।जैसे

MCQs Online Test हिन्दी (कक्षा 10) राम लक्ष्मण परशुराम संवाद

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हिन्दी कक्षा 10 नेताजी का चश्मा (ऑनलाइन प्रश्नोत्तरी)

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रक्त- चरित्र

कोई चरित्र नहीं  कोई मित्र नहीं  कोई रहम नहीं  सब बहम ही बहम पाल लेती है  पालघर में साधुओं को चोर समझकर  मौत के घाट उतार देती है  भीड़ अंधी होती है  भीड़ बहरी होती है  सिर्फ अपनी ही सुनती है  अपनी ही गुनती है  भीड़ बड़ी ताकतवर होती है रक्त- चरित्र के विकास हेतु दस- बीस पुलिस भी खड़ी कर लेती है  क्रोधाग्नि में जलती रहती है किसी भूलवश संस‌र्ग में  आए हुए को राह नहीं दिखाती बल्कि अपनी लपट से झुलसा देती है  मौत की नींद सदा सुला देती है और अपने रक्त- चरित्र को  सशक्त बनाती है  क्योंकि भीड़ का कोई चरित्र नहीं  भीड़ का कोई मित्र नहीं  भीड़ किसी पर रहम  नहीं करती है ! रचनाकार- डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र 7458994874 mishrasampurna906@gmail.com

सदा के लिए सोते हुए पाई

कोरोना के कहर ने  आज अपना रौद्र रूप दिखाया  रामकली की बहू को  रात में सदा के लिए  भूखे पेट सुलाया  प्रसव पीड़ा से वह छटपटा रही थी  भूख- भूख कहकर अपने एक हाथ से असहृय पीड़ा को सुला रही थी  पति लाचार था  बंडी के थैलों ने पहले ही आत्मसमर्पण कर दिया था  पुलिस की पिटाई ने  लक्ष्मण- रेखा में बांध कर रख दिया था  रात में कुछ कमाने के लिए हिम्मत जुटाता था  सूर्योदय के बाद साहस उसका पुरानी साइकिल के पंचर-पहियों    की तरह दो कदम चलने के लिए भी ज़वाब दे देता था चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा था  अपनी हालत पर कभी वह इतना नहीं टूटा था  निरंतर अपनी जांगर से दो रोटी कमाने में हमेशा जुटा था  आज रात में उसकी सास रामकली ने बड़ी मिन्नत कर पड़ोस से एक पाव दूध ले आई थी दो जान बचाने के लिए कसम खाई थी  लेकिन हालात ने उसको तोड़ दिया प्रसव- कक्ष में पहुंचते  ही एक विडाल ने अपने पंजे से दूध का पथ मोड़ दिया  वह असहाय सी खड़ी हो गई ! उसने स्वप्न को टूटते हुए सैकड़ों  बार देखा था आज हकीक़त से पहली बार पाला पड़ा था  रिक्त गिलास लेकर अपनी झोपड़ी में जैसे ही आई 

ऑनलाइन टेस्ट सूरदास के पद

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बच्चे ज्यादा समझदार या बड़े ?

ये पेंटिंग बच्चे ने बनाई है  अब बताइये ..... बच्चे ज्यादा समझदार या बड़े ? बच्चे बड़े व्यक्ति व्यक्ति पर निर्भर करता है Created with QuizMaker

भरोसा जीत गया

इस मुसीबत में  एक शख़्स जीत गया  लोगों के टूटे भरोसे को  जोड़ने में जुट गया  वर्षों से गालियों की कड़वी दवाइयां निरंतर खा रहा था  खाकी का परिधान पहनकर  वेवजह यहां- वहां  सामाजिक निंदों के  जूते खा रहा था  इतने के बावजूद अपनी ईमानदारी के गीत गा रहा था  फिर भी जनता की उम्मीदों पर जिंदा था  एकाध अपने लोगों के किए कृत्यों पर शर्मिंदा था  उसे आस था  इस बात का विश्वास था  एक दिन दामन के  दाग को छुड़ाएंगे  भारत मां के  सच्चे सपूत कहलायेंगे आज इस महामारी की दावाग्नि में  अपने को झोंक दिया   लोगों पर आयी विपदाओं को  स्वयं परिवार से विरत होकर सबके दुखों को लोक लिया।। रचनाकार - डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र 7458994874 mishrasampurna906@gmail.com --

जिन्दगी की कीमत

“ फूल खिलते है खिलते रहेंगे, लोग मिलते हैं मिलते रहेंगे । अपनी जिन्दगी की कीमत पहचानिए, क्योंकि लोग मरते हैं मरते रहेंगे। जिन्होंने बनाई है पहचान अपनी, वो मरकर भी जिन्दा रहेंगे।  वो मरकर भी जिन्दा रहेंगे। कर परिश्रम हो आसान राह अब डोर तेरे हाथ में ,  खींच देगा इसको जितना जिन्दगी की राह में, हर व्यथा से हो गुजरना  घबराना न एक पल,  ये व्यथा ही मोड़ देगी जिन्दगी की राह में। खींच ...................................................... । बात करूँ उस फूल की जो काँटों में भी मुस्कुराता है,  और अपनी खुशबू से सारी बगियाँ महकाता है। मन ऐसा ही पावन कर ले जिन्दगी की राह में,  खींच ........................................................... । भटकी राह यदि जीवन की जीवन का आराम गया,  आराम गया और चैन गया अब काँटे उपजे राह में । खींच ............................................................ । नेहा शर्मा

वक्त की शिनाख्त

ज़िंदगी से मौत की यात्रा में वक्त की शिनाख्त ज़रुरी है कौन अपना है कौन पराया है यह अभिज्ञान भी ज़रूरी है कौन शूल लिए खड़ा है कौन फूल लिए पड़ा है  यह पहचान भी ज़रुरी है  ज़िंदगी से मौत की यात्रा में वक्त की शिनाख्त ज़रुरी है  किस हाथ में माहुर की पोटली है किस हाथ में पाहुर की झोली है यह पहचान भी बहुत ज़रूरी है  ज़िंदगी से मौत की यात्रा में  वक्त की शिनाख्त बहुत ज़रुरी है‌ कौन सौगात - स्थालिका लाया है कौन विष की लता बोने आया है  यह  ज्ञान  भी ज़रूरी है ज़िंदगी से मौत की यात्रा में  वक्त की शिनाख्त बहुत ज़रुरी है डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र  7458994874 mishrasampurna906@gmail.com

CCS(CCA) Rules 1965-MISCELLANEOUS

PART IX  MISCELLANEOUS 30.           Service of orders, notices, etc. Every order, notice and other process made or issued under these rules shall be served in person on the Government servant concerned or communicated to him by registered post. 31.           Power to relax time-limit and to condone delay Save as otherwise expressly provided in these rules, the authority competent under these rules to make any order may, for good and sufficient reasons or if sufficient cause is shown, extend the time specified in these rules for anything required to be done under these rules or condone any delay. 32.         Supply of copy of Commission's advice Whenever the Commission is consulted as provided in these rules, a copy of the advice by the Commission and where such advice has not been accepted, also a brief statement of the reasons for such non-acceptance, shall be furnished to the Government servant concerned along with a copy of the order passed in the case, by