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हिन्दी कक्षा 9 - ल्हासा की ओर

Online Quiz हिन्दी व्याकरण उपसर्ग व प्रत्यय

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बच्चे काम पर जा रहे हैं पाठ योजना

पाठ योजना कक्षा  –  नौवीं विषय -  हिंदी पाठ-    बच्चे काम पर जा रहे हैं    समयावधि  – जनबरी  2017 पाठ का संक्षिप्त परिचय  – इस कविता में बच्चों से बचपन छीन लिए जाने की पीड़ा व्यक्त हुई है। कवि ने उस सामाजिक – आर्थिक विडंबना की ओर इशारा किया है जिसमें कुछ बच्चे खेल , शिक्षा और जीवन की उमंग से वंचित हैं। कवि कहता है कि बच्चों का काम पर जाना आज के ज़माने में बड़ी भयानक बात है। यह उनके खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने के दिन हैं। फिर भी वे काम करने को मजबूर हैं। उनके विकास के लिए सभी चीज़ों के रहते हुए भी उनका काम पर जाना कितनी भयानक बात है। अपनी कविता के माध्यम से वह समाज को जागृत करना चाहते हैं ताकि बच्चों के बचपन को काम की भट्टी में झौंकने से रोका जा सके। कवि परिचय राजेश जोशी इनका जन्म सन 1946 में मध्य प्रदेश के नरसिंहगढ़ जिले में हुआ। उन्होंने पत्रकारिता, अध्यापन कार्य भी किया। इन्होने कविताओं के अलावा कहानियाँ, नाटक, लेख, और टिप्पणियाँ भी लिखीं। उनकी कविताएँ गहरे सामाजिक अभिप्राय वाली होती हैं। प्रमुख कार्य काव्य संग्...

यमराज की दिशा पाठ योजना

पाठ योजना कक्षा  –  नौवीं विषय -  हिंदी पाठ-    यमराज की दिशा   समयावधि  – दिसम्बर  2016 पाठ का संक्षिप्त परिचय  – प्रस्तुत कविता में कवि ने सभ्यता के विकास की खतरनाक दिशा की ओर इशारा करते हुए कहा है कि जीवन-विरोधी ताकतें चारों तरफ़ फैलती जा रही हैं। जीवन के दुख-दर्द के बीच जीती माँ अपशकुन के रूप में जिस भय की चर्चा करती थी, अब वह सिर्फ़ दक्षिण दिशा में ही नहीं हैं, सर्वव्यापक है। सभी तरफ़ फैलते विध्वंस, हिंसा और मृत्यु के चिह्नों की ओर इंगित करके कवि इस चुनौती के सामने खड़ा होने का मौन आह्वान करता है।  कवि कहता है कि उसकी माँ का ईश्वर के प्रति गहरा विश्वास था । वह ईश्वर पर भरोसा करके अपना जीवन किसी तरह बिताती आई थी। वह हमेशा दक्षिण की तरफ़ पैर करके सोने के लिए मना करती थी। अपने बचपन में कवि पूछता था कि यमराज का घर कहाँ है? माँ बताती थी कि वह जहाँ भी है वहाँ से हमेशा दक्षिण की तरफ़। उसके बाद कवि कभी भी दक्षिण की तरफ़ पैर करके नहीं सोया। वह जब भी दक्षिण की ओर जाता , उसे अपनी माँ के याद अवश्य आती। माँ अब नहीं है। ...

एक कुत्ता और एक मैना पाठ योजना

पाठ योजना कक्षा  – नौवीं विषय -  हिंदी पाठ-    एक कुत्ता और एक मैना  समयावधि  – दिसम्बर 2016 पाठ का संक्षिप्त परिचय  – यह निबंध 'गुरुदेव' रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की व्यक्तिव को उजागर करते हुए लिखा गया है। लेखक ने अपने और गुरुदेव के बीच के बातचीत द्वारा उनके स्वभाव में विद्यमान गुणों का परिचय दिया है। इसमें रवीन्द्रनाथ की कविताओं और उनसे जुड़ी स्मृतियों के ज़रिए गुरुदेव की संवेदनशीलता, आंतरिक विराटता और सहजता के चित्र तो उकेरे ही गए हैं तथा पशु-पक्षियों के संवेदनशील जीवन का भी बहुत सूक्ष्म निरीक्षण है। इस पाठ में न केवल पशु-पक्षियों के प्रति मानवीय प्रेम प्रदर्शित है, बल्कि पशु-पक्षियों से मिलने वाले प्रेम, भक्ति, विनोद और करुणा जैसे मानवीय भावों का भी विस्तार है। यह निबंध हमें जीव-जंतुओं से प्रेम और स्नेह करने की प्रेरणा देता है। लेखक परिचय हजारीप्रसाद दिवेदी इनका जन्म सन 1907 में गाँव आरत दुबे का छपरा, जिला बलिया (उत्तर प्रदेश) में हुआ। उन्होंने उच्च शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविधालय से प्राप्त की तथा शान्ति निकेतन,...

मेरे बचपन के दिन-पाठ योजना

पाठ योजना कक्षा – नौवीं विषय - हिंदी पाठ- मेरे बचपन के दिन समयावधि –  पाठ का संक्षिप्त परिचय – प्रस्तुत संस्मरण में महादेवी जी ने अपने बचपन के उन दिनों को स्मृति के सहारे लिखा है जब वे विद्यालय में पढ़ रही थीं। इस अंश में लड़कियों के प्रति सामाजिक रवैये , विद्यालय की सहपाठिनों , छात्रावास के जीवन और स्वतंत्रता आंदोलन के प्रसंगों का बहुत ही सजीव वर्णन है। लेखिका अपने बचपन के दिनों को याद कर कहती है कि वे परिवार में पहली लड़की पैदा हुईं थीं। घर में हिन्दी का कोई वातावरण नहीं था लेकिन माँ ने उसे संस्कृत , हिन्दी , अंगेरज़ी आदि की शिक्षा दी। फिर मिशन स्कूल में जाने पर उनकी मुलाकात सुभद्रा कुमारी चौहान से हुई। उनके छात्रावास में विभिन्न स्थानों से आए बच्चों में एकता एवं सहानुभुति की भावना थी। वे कविता भी लिखती थी। कविता –पाठ में उन्हें हमेशा प्रथम पुरस्कार ही मिलता था। एक बार उन्होंने पुरस्कार में मिले चाँदी के कटोरे को दानस्वरूप गाँधी जी को दे दिया। उनके घर के पास रहने वाले नवाब साहब के परिवार से उनके बड़े अच्छे संबंध थे। नवाब साहब ने ही उनके छोटे भाई का नामकरण किया था। ...

मेघ आए -पाठ योजना

पाठ योजना कक्षा – नौवीं विषय - हिंदी पाठ- मेघ आए समयावधि –  पाठ का संक्षिप्त परिचय – इस कविता में मेघों के आने की तुलना सजकर आए प्रवासी अतिथि दामाद) से की है। ग्रामीण संस्कृति में दामाद के आने पर उल्लास का जो वातावरण बनता है , मेघों के आने का वर्णन करते हुए कवि ने उसी उल्लास को दिखाया है। कवि ने मेघों की तुलना सजकर आए अतिथि (दामाद) से करते हुए कहा है कि मेघ शहर से आए अतिथि की भाँति सज-धज कर आए हैं। जिस तरह मेहमान के आने पर गाँव के लड़के-लड़कियाँ भाग कर सबको इसकी सूचना देते हैं , उसी तरह मेघ के आने की सूचना देने के लिए हवा तेज़ गति से बहने लगी है। मेहमान को देखने के लिए जिस तरह लोग खिड़की-दरवाजों से झाँकते हैं , उसी तरह मेघों के दर्शन के लिए भी लोग उत्सुकतापूर्वक खिड़की-दरवाजों से बाहर आकाश की तरफ़ देखने लगे हैं। इस तरह छोटे-बड़े , काले-भूरे-सफेद रंग के मेघ अपने दल-बल के साथ आकाश में ऐसे छा गए हैं मानो कोई शहरी मेहमान सज-धज कर गाँव में आया हो। जिस तरह   मेहमान के आने पर गाँव के वृद्ध आगे आकर और हाथ जोड़कर अतिथि का आदर सत्कार करते हैं तथा पत्नी दीवार   की ओट लेकर...

प्रेमचंद के फ़टे जूते -पाठ योजना

पाठ योजना कक्षा – नौवीं विषय - हिंदी पाठ- प्रेमचंद के फटे जूते समयावधि – पाठ का संक्षिप्त परिचय – प्रस्तुत लेख में परसाई जी ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी के साथ एक रचनाकार की अंतर्भेदी सामाजिक दॄष्टि का विवेचन करते हुए आज की दिखावे की प्रवृत्ति एवं अवसरवादिता पर व्यंग्य किया है। लेखक प्रेमचंद के फटे जूते को देखकर आश्चर्यचकित होकर कहता है कि फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी ? जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अंगुली बाहर निकल आई है। फिर भी चेहरे पर बड़ी बेपरवाही और विश्वास है। यह मुस्कान नहीं , इसमें उपहास है , व्यंग्य है। वह आगे कहता है कि इससे अच्छा होता कि तुम फोटो ही नहीं खिंचाते। तुम फोटो का महत्व नहीं समझते । लोग तो ऐसे कमों के लिए जूते क्या कपड़े और बीवी तक माँग लेते हैं।एक टोपी तक नहीं पहनी। टोपी तो आठ आने में मिल जाती है। तुम महान कथाकार , उपन्यास-सम्राट , युग-प्रवर्तक , जाने क्या-क्या कहलाते थे , मगर फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है। फिर लेखक अपनी बात करता है कि मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं   है , मगर अंगुली बाहर नहीं निकलत...

अर्थ के आधार पर वाक्य भेद

अर्थ के आधार पर वाक्य के निम्नलिखित आठ भेद हैं। विधानवाचक जिन वाक्यों में क्रिया के करने या होने की सूचना मिले, उन्हें विधानवाचक वाक्य कहते हैं; जैसे- मैंने दूध पिया। वर्षा हो रही है। निषेधवाचक जिन वाक्यों से कार्य न होने का भाव प्रकट होता है, उन्हें निषेधवाचक वाक्य कहते हैं; जैसे- मैंने दूध नहीं पिया। मैंने खाना नहीं खाया। आज्ञावाचक जिन वाक्यों में आज्ञा, प्रार्थना, उपदेश आदि का ज्ञान होता है, उन्हें आज्ञावाचक वाक्य कहते हैं; जैसे- बाज़ार जाकर फल ले आओ। बड़ों का सम्मान करो। प्रश्नवाचक जिन वाक्यों से किसी प्रकार का प्रश्न पूछने का ज्ञान होता है, उन्हें प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं; जैसे- सीता तुम कहाँ से आ रही हो? तुम क्या पढ़ रहे हो? इच्छावाचक जिन वाक्यों से इच्छा आशीष एवं शुभकामना आदि का ज्ञान होता है, उन्हें इच्छावाचक वाक्य कहते हैं; जैसे- तुम्हारा कल्याण हो। भगवान तुम्हें लंबी उमर दे। संदेहवाचक जिन वाक्यों से संदेह या संभावना व्यक्त होती है, उन्हें संदेहवाचक वाक्य कहते हैं; जैसे- शायद शाम को वर्षा हो जाए। वह आ रहा होगा, पर हमें क्या मालूम। हो सकता है रा...

माटीवाली -प्रश्नोत्तर कक्षा 9

1.  'शहरवासी सिर्फ माटी वाली को नहीं, उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते हैं।' आपकी समझ से वे कौन से कारण रहे होंगे जिनके रहते 'माटी वाली' को सब पहचानते थे? उत्तर शहरवासी माटी वाली तथा उसके कंटर को इसलिए जानते होंगे क्योंकि पूरे टिहरी शहर में केवल वही अकेली माटी वाली थी। उसका कोई प्रतियोगी नहीं था। वही सब घरों में लीपने वाली लाल मिट्टी दिया करती थी। लाल मिट्टी की सबको ज़रुरत थी। इसलिए सभी उसके ग्राहक थे। वह पिछले अनेक वर्षों से शहर की सेवा कर रही थी। इस कारण स्वाभाविक रूप से सभी लोग उसे जानते थे। माटी वाली की गरीबी, फटेहाली और बेचारगी भी उसकी पहचान का एक कारण रही होगी। 2 . माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में ज़्यादा सोचने का समय क्यों नहीं था? उत्तर   माटीवाली अपनी आर्थिक और पारिवारिक उलझनों में उलझी, निम्न स्तर का जीवन जीने वाली महिला थी। अपना तथा बुड्ढे का पेट पालना ही उसके सामने सबसे बड़ी समस्या थी। सुबह उठकर माटाखाना जाना और दिनभर उस मिट्टी को बेचना इसी काम में उसका सारा समय बीत जाता था। अपन...

रीढ़ की हड्डी -अभ्यास

1.  रामस्वरूप और रामगोपाल प्रसाद बात-बात पर "एक हमारा जमाना था .... " कहकर अपने समय की तुलना वर्तमान समय से करते हैं । इस प्रकार की तुलना कहाँ तक तर्क संगत है ? उत्तर इस तरह की तुलना करना बिल्कुल तर्कसंगत नहीं होता क्योंकि समय के साथ समाज में, जलवायु में, खान-पान में सब में परिवर्तन होता रहता है। हर समय परिस्थितियां एक सी नही होतीं हैं। हर ज़माने की अपनी स्थितियाँ होती हैं, जमाना बदलता है तो कुछ कमियों के साथ सुधार भी आते हैं। 2. रामस्वरूप का अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाना और विवाह के लिए छिपाना, यह विरोधाभास उनकी किस विवशता को उजागर करता है? उत्तर आधुनिक समाज में सभ्य नागरिक होने के बावजूद उन्हें अपनी बेटी के भविष्य की खातिर रूढ़िवादी लोगों के दवाब में झुकाना पड़ रहा था। उपर्युक्त बात उनकी इसी विवशता को उजागर करता है। 3. अपनी बेटी का रिश्ता तय करने के लिए रामस्वरूप उमा से जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा कर रहे हैं, उचित क्यों नहीं है ? उत्तर अपनी बेटी का रिश्ता तय करने के लिए रामस्वरूप उमा से जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा कर रहे हैं, वह सरासर गलत है...