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Showing posts from February, 2019

Solve problem of terrorism आतंकवाद

सिर्फ वे ही आतंकवादी हो सकते हैं उनके पास खोने को कुछ नहीं है ।  वे समूचे समाज के  खिलाफ उबल रहे हैं  क्योंकि उसी उच्च वर्ग के पास वे चीजें हैं ,  जो इनके पास नहीं हैं । लोग भय में जी रहे हैं , नफरत में जी रहें हैं ,  आनंद में नहीं । अमीर आदमी कभी आतंकवादी नहीं बन सकता अमीरी सिर्फ पैसे की नहीं होती समाज ने बच्चे को गरीबी में ले जाने के सारे इंतजाम कर रखे हैं जो भी कार्य आनंदित करता है उसकी निंदा करता है समाज प्रतियोगिता बच्चे को गरीब बनाती है एक वार बच्चा प्रतियोगिता में पड़ गया तो वह अपने से आगे कभी किसी को न देख सकेगा प्रथम आने की हमेशा अपेक्षा और तारीफ! आतंकवाद मिटाना है तो मनुष्य के अवचेतन से मिटाना होगा हर बच्चे को धन से परिपूर्ण, प्रेम में जीने  मौन में जीने  ध्यान में जीने  के अवसर देने होंगे...

Love is the key to know Existence परमात्मा

प्रेम में ईर्ष्या हो तो प्रेम ही नहीं है प्रेम में भय हो तो प्रेम ही नहीं है प्रेम के नाम से कुछ और ही रोग है प्रेम के नाम से  दूसरे पर मालकियत करने का मजा दूसरे व्यक्ति का साधन की भाँति उपयोग  प्रेमी अगर विश्वास न कर सके,  श्रद्धा न कर सके,  भरोसा न कर सके,  तो प्रेम में फूल खिले ही नहीं। ईर्ष्या, जलन, वैमनस्य, द्वेष,  भय घृणा के फूल हैं।  जो प्रेम से चूका.... वह परमात्मा से भी चूक जाता है।  असली प्रेम उसी दिन उदय होता है  जिस दिन इस सत्य को समझ पाते हैं  कि सब तरफ परमात्मा विराजमान है।

Out of fear डर से मुक्ति

अगर कोई इच्छा न हो भविष्य में कुछ बनना न चाहो तो फिर कोई भय नहीं है। अगर स्वर्ग जाना नहीं चाहते तो कोई भय नहीं होता, कोई धर्मगुरु डरा नहीं पाता जहां हो वही स्वर्ग बन जाता अगर इसी क्षण में जीने लगे तो भय मिट जाता है। भय वासना के कारण पैदा होता है। झाँको भय में। जब भी भय लगे तो देखो कि वह कहाँ से आ रहा है- कौन सी इच्छा, कौन सी वासना उसे निर्मित कर रही है- और फिर उसकी व्यर्थता को देखो। भय रूपांतरित हो जाता है भय की ऊर्जा बदल जाती है शांति में, प्रेम में, आनंद में

Good morning

जीवन दो तरह से जिया जा सकता है एक मालिक की तरह,  एक गुलाम की तरह।  गुलाम की तरह जो जीवन है,  उसे जीवन कहना भी गलत है। मालिक से अर्थ है,  ऐसे जीना जैसे जीवन अभी और यहीं है।  कल पर छोड़कर नहीं,  आशा में नहीं,  यथार्थ में।  मालिक के जीवन का अर्थ है,  मन गुलाम हो,  चेतना मालिक हो।  होश मालिक हो, वृत्तियां मालिक न हों।  विचारों का उपयोग किया जाए,  विचार हमारा उपयोग न कर लें।  लगाम हाथ में हो जीवन की।  जहां हम जीवन को ले जाना चाहें,  वहीं जीवन जाए।  मन के पीछे घसिटना न पड़े।