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Showing posts from January, 2021

उपन्यास के दु:खद पृष्ठों में

 आज का किसान  रिहा हो गया है  प्रेमचंद के गोदान से नहीं पुनः कैद होना चाहता है  कहानी और उपन्यास  के दुख़द पृष्ठों में    होरी और घीसू को  अरसे से बरगलाया गया  कफ़न के नाम पर अनवरत गालियां दी गयीं पसीना बहाकर भी  वह सतत सहलाता ही रहा पेट को। निरंतर मृत्यु की भट्ठी में  असह्य प्रसव वेदना से छटपटाती  बुधिया के जीवन की कुर्बानी से वर्षों तलवे सहलाता आया  किसान अब अनभिज्ञ नहीं  है  पूंजीवाद की भाषा  खूब समझता है अब वह  इसलिए सड़क पर  डटकर खड़ा है  पक्ष और विपक्ष को खूब अब तड़ा है  वह जानता है  इस बात को मानता है कि सब एक ही हैं  स्वार्थ की रोटियां दोनों सेंक रहे हैं सियासी आग की भट्ठी में  मुझ होरी और घीसू को  एक बार फिर झोंक रहे हैं  डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र प्रयागराज फूलपुर 7458994874

फल

वृहद सुख की कामना  मन में  लिए घूम रहा है मनुष्य इधर- उधर उस मृग की तरह  छद्माभास जिसे होता है अनवरत  छद्माभास  एक गंभीर रोग है नज़र का  जिसके ताने- बाने को    सत्ता और संपत्ति ने ही बुना है  निरंतर सिलता है  सत्ता और संपत्ति  अहंकार के ही परिधान को   भटक रहा है सदियों से इंसान इसीलिए इसे धारण कर  नरक का पथ निर्मित होता है अहंकार से  क्योंकि इस दोष से नहीं बच सके  हैं बड़े- बड़े संन्यासी  इसीलिए नहीं चख सके  समता के फल के स्वाद को      क्योंकि  समता के फल का स्वाद  मिलता है उन्हीं को   जिन्होंने अहंकार के  वृहदाकार खोह को   प्यार  की मिट्टी से पाटा हो  देश के कुछ संतों ने पाटा था इसे   चख सके इसीलिए  समता के फल के मीठे स्वाद को वे डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र प्रयागराज फूलपुर 7458994874