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Showing posts from October, 2019

Friendship is purest love

Friendship is the purest love. It is the highest form of Love  where nothing is asked for, no condition, where one simply enjoys giving. "मित्रता" शुद्धतम प्रेम है. ये प्रेम का सर्वोच्च रूप है  जहाँ कुछ भी नहीं माँगा जाता , कोई शर्त नहीं होती , जहां बस देने में आनंद आता है.

भीतर की दिवाली - स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती

दीपावली पर साफ-सफाई पर बहुत जोर रहता है। बाहर की साफ-सफाई हमारे शरीर के लिए उपयोगी है। इससे हम अधिक स्वस्थ भी रह सकते हैं। लेकिन कुल मिलाकर ये सब बस बाहर-बाहर की ही बातें हैं। एक सफाई स्वयं के भीतर की भी होती है। हमारे मन में भी बहुत कुछ दमित भावनाएं, विचार और आवेग होते हैं। हमने जो सभ्यता-संस्कृति विकसित की है, उसमें हम अपनी भावनाओं को, विचारों को, अपनी नैसर्गिक प्रवृत्तियों को सहजता से व्यक्त नहीं कर पाते। हमारा व्यवहार एक मर्यादा या एक सीमा में बंधा होता है। सभ्यता का एक तकाजा होता है जिसके कारण कुछ चीजें हम प्रकट कर पाते हैं, कुछ नहीं कर पाते। परिणामस्वरूप, हमें औपचारिक होना पड़ता है।एटिकेट्स और मैनर्स ऐसी ही औपचारिकताएं हैं जिनके सहारे हम जीते हैं। मसलन, जब भी क्रोध उत्पन्न होता है, हमारे भीतर एक तीव्र आवेग उत्पन्न होता है। उसकी प्रतिक्रिया के तौर पर हम बहुत कुछ करना चाहते हैं, लेकिन कर नहीं पाते। इन बंधनों से कृत्रिम व्यवस्था तो बनी रहती है, लेकिन इससे हमारे सहज आवेग समाप्त नहीं हो जाते। हम जिन भी नकारात्मक चीजों को express नहीं कर सकते, वे हमारे भीतर suppress होती जाती हैं, हम

मनमोहन

देखो एक बड़े राज की बात है कि मन का भोजन है विचार। मन को जीवित रहने के लिए विचार चाहिए ही। निर्विचार मन नाम की कोई चीज होती ही नहीं। निर्विचार की स्थिति में मन होता ही नहीं। विचार दो में से एक का ही होता है, या तो अतीत की स्मृति, या भविष्य की कामना। कामना के लिए भविष्य चाहिए ही, यों हर इच्छा मन को भविष्य में ले जाती है। इससे मन को और जीने का आश्वासन हो जाता है। मन कहता है, कर लेंगे, अभी क्या जल्दी है, बस यह एक इच्छा पूरी हो जाए, फिर मैं शांत हो जाऊंगा। पर उसका तो काम ही झूठ बोलना है, असली बात तो यह है कि इच्छा की पूर्ति से इच्छा की निवृत्ति कभी होती ही नहीं, वरन्- "तृष्णा अधिक अधिक अधिकाई" इच्छाएँ बढ़तीं ही हैं। जितनी जितनी मन की इच्छा पूरी करते जाएँगे, मन उतना ही और और इच्छाएँ करता चलेगा, इसे अ-मन करना और और कठिन हो जायेगा। पहला ही कदम गलत उठा कि वापस लौटना और कठिन हुआ। पहली ही इच्छा पर मन की चालबाज़ी को पहचान कर, मन को डाँट कर रोक देने वाले को, मन सरलता से काबू हो जाता है। क्या आप नहीं जानते कि रोग, अवगुण, आदत और साँप से छोटे होते हुए ही, छुटक