बुद्ध ने कहा मुझ पर भरोसा मत करना | मैं जो कहता हूँ उस पर इसलिए भरोसा नहीं करना कि मैं कहता हूँ | सोचना, विचारना, जीना | तुम्हारे अनुभव की कसौटी पर सही हो जाए तो सही है | भगवान बुद्ध के अंतिम वचन हैं : “अप्प दीपो भव” | अपने दिए खुद बनना | क्यूंकि तुम मेरी रौशनी में थोड़ी देर रोशन हो लोगे | फिर हमारे रास्ते अलग हो जायेंगे | मेरी रौशनी मेरे साथ होगी, तुम्हारा अँधेरा तुम्हारे साथ होगा | अपनी रौशनी खुद पैदा करो |
31 दिसम्बर की रात, पूरा माहौल रंगीन और जश्न में डूबा है। उत्तेजना बढ़ती जाती है और इकतीस दिसंबर की आधी रात हम सोचते हैं कि पुराना साल रात की सियाही में डुबोकर कल सब कुछ नया हो जाएगा। यह एक रस्म है जो हर साल निभाई जाती है, जबकि हकीकत यह है कि दिन तो रोज ही नया होता है, लेकिन रोज नए दिन को न देख पाने के कारण हम वर्ष में एक बार नए दिन को देखने की कोशिश करते हैं। दिन तो कभी पुराना नहीं लौटता, रोज ही नया होता है, लेकिन हमने अपनी पूरी जिंदगी को पुराना कर डाला है। उसमें नए की तलाश मन में बनी रहती है। तो वर्ष में एकाध दिन नया दिन मानकर अपनी इस तलाश को पूरा कर लेते हैं। यह सोचने जैसा है जिसका पूरा वर्ष पुराना होता हो उसका एक दिन नया कैसे हो सकता है? जिसकी पूरे साल पुराना देखने की आदत हो वह एक दिन को नया कैसे देख पाएगा? देखने वाला तो वही है, वह तो नहीं बदल गया। जिसके पास ताजा मन हो वह हर चीज को ताजी और नई कर लेता है, लेकिन हमारे पास ताजा मन नहीं है। इसलिए हम चीजों को नया करते हैं। मकान पर नया रंग-रोगन कर लेते हैं, पुरानी कार बदलकर नई कार ले लेते हैं, पुराने कपड़े की जगह नया कपड़ा लाते हैं। हम...
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