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Showing posts from October, 2020

अहं ब्रह्मास्मि

 जिन्हें इंकार है उसके अस्तित्व से ही और जो माने बैठे हैं मूरत में सूरत में मंदिर मस्जिद गिरजे में काशी क़ाबा पोथी में सब ख़तरनाक हैं क्योंकि वे हिस्सा हैं एक ख़तरनाक खेल का वे लेते हैं ठेका या दिखाते हैं ठेंगा मिट्टी को पकड़ो  या आसमान को आस्तिक कहाओ नास्तिक कहाओ दोनों एक जैसे हो क्योंकि दोनों देखते हैं सिर्फ बाहर एक को पाने का भ्रम दूसरे को न पाने की खुशी दोनों गफ़लत में दोनों ख़तरनाक दोनों भीतर से अनजान दोनों शक्तिहीन दोनों खाली इसीलिए दोनों आक्रामक दोनों हिंसक एक तीसरा भी तो है जो महसूसता है एक अनंत शक्ति अपार आस्था अटूट संबंध भीतर ही भीतर और निरंतर होता रहता है समृद्ध सार्थक सशक्त और बनाता रहता है अपनी दुनिया को सबके रहने लायक -  संपूर्णानंद मिश्र     प्रयागराज, फूलपुर      7458994874

परिवर्तन

परिवर्तनशील है यह संसार यह ध्रुव सत्य है नहीं है इसमें कोई संदेह आज जो चल रहा है कल बिल्कुल नहीं होगा  नहीं संकोच करती है  प्रकृति परिवर्तन में इसीलिए संकोच की मुट्ठी खोल देती है लुटाती है अपनी संपदा   दोनों हाथों से  जानती है कि अंश है इसमें सबका  और जिसका है  उसको मिलना चाहिए  अपनी आत्मा पर कार्पण्य का बोझ नहीं ढो पाती है इसीलिए बावजूद नहीं सीख पाता है मनुष्य कुछ भी उससे  समा लेना चाहता है  समस्त सांसारिक वैभव को अपने पेट की भरसांय में  गिद्ध दृष्टि रहती है दूसरे के हिस्सों में भी  जरायम की दुनिया तक ले जाता है दूसरों के अंश को निगलने का सपाट रास्ता भयाक्रांत हो जाता है परिवर्तन के प्रभंजन से ही मनुष्य  नहीं सामना करना चाहता है  बदलाव के अंधड़ का  क्योंकि वह जानता है कि परिवर्तन की आंधी उड़ा ले जाती    सब कुछ  पहुंचाती है  सबसे ज़्यादा चोट  अहंकार की थूनी को     संपूर्णानंद मिश्र     प्रयागराज फूलपुर     7458994874