Skip to main content

काम शुरू करने के बाद जोश ठंडा पड़ जाता है, क्या करें?

ये बहुत ही कॉमन प्रॉब्लम है । काम बड़े जोश के साथ शुरू करते हैं पर कुछ समय बाद सारा जोश चला जाता है । किसी भी काम की पूर्णता संकल्प शक्ति पर निर्भर करती है । संकल्प शक्ति कोई जादू नहीं जो जब चाहे तब बड़ा लो । किसी भी काम की पूर्णता हेतु संकल्प निम्न बातों पर निर्भर करता है -

1. साहस - अतीत से मुक्ति का साहस, भविष्य की चुनोतियों को स्वीकार करने का साहस । अभी तक जिस पैटर्न पर जीवन चल रहा था उसमें कुछ नए करने का साहस चाहिए और नया करेंगे तो नई चुनोतियाँ होंगी उन्हें स्वीकार करने का साहस चाहिए ।

2. संतुलन - दिल, दिमाग और अंतःकरण का संतुलन होगा तो अपने आप का पूर्ण सहयोग प्राप्त होगा । वही काम करें जिसे करने की इजाजत हृदय, मश्तिष्क और आत्मा दें । वही काम सफल होता है जो दिल को भाता हो, तर्क पर खरा उतरता हो और अंतःकरण स्वीकार करता हो ।
दिल - भावनाओं का केंद्र
दिमाग - तर्कशक्ति का केंद्र
अंतःकरण - सही गलत का निर्णय करने का केंद्र

3. संकल्पना - सकारात्मक संकल्पना करनी होगी । मानो कि हो ही गया जो मैने चाहा ।

4. शेयरिंग - बड़ा काम अकेले संभव नहीं है । अपने मन की बात लोंगो को बताओ और अपनी टीम का चयन करो ।

5. विभाजन - कार्य को छोटे छोटे हिस्सों में बांट लें एक एक हिस्से पर कार्य कर पूर्ण करें । जैसे छत पर जाने के लिए एक-एक कदम सीढ़ी पर बढ़ाते हैं और अंत में छत पर पहुंच जाते हैं । एक ही कदम में छत पर पहुंचना संभव नहीं ।




Comments

  1. बहुत बढि़या समाधान,आत्म शक्ति के लिए थोडासा ध्यान कर ले।

    ReplyDelete
  2. बिल्कुल सही बात।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

नया साल ! क्या सचमुच नया है ?

31 दिसम्बर की रात, पूरा माहौल रंगीन और जश्न में डूबा है। उत्तेजना बढ़ती जाती है और इकतीस दिसंबर की आधी रात हम सोचते हैं कि पुराना साल रात की सियाही में डुबोकर कल सब कुछ नया हो जाएगा। यह एक रस्म है जो हर साल निभाई जाती है, जबकि हकीकत यह है कि दिन तो रोज ही नया होता है, लेकिन रोज नए दिन को न देख पाने के कारण हम वर्ष में एक बार नए दिन को देखने की कोशिश करते हैं। दिन तो कभी पुराना नहीं लौटता, रोज ही नया होता है, लेकिन हमने अपनी पूरी जिंदगी को पुराना कर डाला है। उसमें नए की तलाश मन में बनी रहती है। तो वर्ष में एकाध दिन नया दिन मानकर अपनी इस तलाश को पूरा कर लेते हैं। यह सोचने जैसा है जिसका पूरा वर्ष पुराना होता हो उसका एक दिन नया कैसे हो सकता है? जिसकी पूरे साल पुराना देखने की आदत हो वह एक दिन को नया कैसे देख पाएगा? देखने वाला तो वही है, वह तो नहीं बदल गया। जिसके पास ताजा मन हो वह हर चीज को ताजी और नई कर लेता है, लेकिन हमारे पास ताजा मन नहीं है। इसलिए हम चीजों को नया करते हैं। मकान पर नया रंग-रोगन कर लेते हैं, पुरानी कार बदलकर नई कार ले लेते हैं, पुराने कपड़े की जगह नया कपड़ा लाते हैं। हम...

Teachers day शिक्षा व्यवस्था बनाम शिक्षा

कोई भी व्यक्ति ठीक अर्थों में शिक्षक तभी हो सकता है जब उसमें विद्रोह की एक अत्यंत ज्वलंत अग्नि हो। जिस शिक्षक के भीतर विद्रोह की अग्नि नहीं है वह केवल किसी न किसी निहित, स्वार्थ का, चाहे समाज, चाहे धर्म, चाहे राजनीति, उसका एजेंट होगा। शिक्षक के भीतर एक ज्वलंत अग्नि होनी चाहिए विद्रोह की, चिंतन की, सोचने की। लेकिन क्या हममें सोचने की अग्नि है और अगर नहीं है तो आ एक दुकानदार हैं। शिक्षक होना बड़ी और बात है। शिक्षक होने का मतलब क्या है? क्या हम सोचते हैं- सारी दुनिया में सिखाया जाता है बच्चों को, बच्चों को सिखाया जाता है, प्रेम करो! लेकिन कभी  विचार किया है कि पूरी शिक्षा की व्यवस्था प्रेम पर नहीं, प्रतियोगिता पर आधारित है। किताब में सिखाते हैं प्रेम करो और पूरी व्यवस्था, पूरा इंतजाम प्रतियोगिता का है। जहां प्रतियोगिता है वहां प्रेम कैसे हो सकता है। जहां काम्पिटीशन है, प्रतिस्पर्धा है, वहां प्रेम कैसे हो सकता है। प्रतिस्पर्धा तो ईर्ष्या का रूप है, जलन का रूप है। पूरी व्यवस्था तो जलन सिखाती है। एक बच्चा प्रथम आ जाता है तो दूसरे बच्चों से कहते हैं कि देखो तुम पीछे रह गए और यह पहले आ ...

Online MCQ test Vachya वाच्य

Loading…