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Showing posts from November, 2020

मेरी माँ - कवियत्री अंजू परिहार

निराशा में आशा है जीवन में मेरी सूरज की पहली किरण से पहले उठे जो मेरी माँ, हर पल हर वक्त हर समय मुस्कुराती सी मेरी माँ । न सीमा न अंत है, ऐसा प्रेम मेरी माँ , दिल क्यों वो तो आत्मा पढ़ ले, ऐसी मेरी मााँ, दुःख की छाया उसके आाँचल में, सर रख हो जाती ग़ुम ऐसी मेरी माँ | लोग घूमे मथुरा काशी मेरा चार धाम मेरी माँ करने को मेरे सपने साकार, भूल गई वो अपने सपने, ऐसी मेरी माँ त्याग की देवी ममता की मूरत, सर्वोपरि है रिश्ता हमारा, ऐसी मेरी मााँ|

दीपावली

 दीपावली केवल बाहर रोशनी जलाने का नाम नहीं, बल्कि अंतर को भी प्रज्ज्वलित करने का पर्व है। हमारी चेतना बाहर की ओर देखती है, अगर हम अंदर की ओर देखें तो कायाकल्प हो सकता है। अगर अंदर की रोशनी जल गई तो पूरा जीवन जगमग जगमग हो जाएगा। अपने अंतर में दीया जलाने की प्रक्रिया को ही ध्यान कहते हैं। आपका पूरा जीवन जगमग जगमग हो ऐसी शुभकामनाएं । हमारी चेतना बाहर की तरफ देखती है। यह कुछ स्वाभाविक है। बच्चा पैदा होता है तो स्वाभाविक है कि पहले बाहर देखे। जैसे ही बच्चे का जन्म होता है तो वह आंख खोलेगा, बाहर का संसार दिखाई पड़ेगा। कान खुलेंगे, बाहर की ध्वनियां सुनाई पड़ेंगी। हाथ फैलाएगा, मां को छुएगा, स्पर्श करेगा, बाहर की यात्रा शुरू हो गई। फिर प्रतिपल की जरूरतें हैं। बच्चे को भूख लगेगी तो रोएगा। भूख भीतर तो भर नहीं सकती। बाहर से भरनी पड़ेगी। प्यास लगेगी तो रोएगा। पानी तो बाहर से मांगना पड़ेगा। भीतर तो कोई जल के स्रोत नहीं हैं। बाहर में धीरे-धीरे निमज्जित होता जाएगा। धीरे-धीरे बाहर ही सब कुछ हो जाएगा। भीतर की याद ही न आएगी। तुम भूल ही जाओगे कि तुम भी हो। दो फकीर रास्ते से गुजरते थे। अचानक एक फकीर ने कहा कि

मोह - एक मनोवैज्ञानिक सत्य

    बाधक होता है मोह लक्ष्य में अपने को ही पहचानता है केवल       अपनी ही  जय-जयकार करवाता है छल लेता है कांपती एवं लड़खड़ाती आवाज़ों को  थोड़ा और खुलकर कहा जाय  तो नष्ट हो जाती है  प्रज्ञा ऐसे व्यक्ति की नहीं भेद कर पाता है  सत्य और असत्य में  पाप और पुण्य में  देशभक्ति और देशद्रोह में न्याय और अन्याय में  रात और दिन में  सूर्य और चांद में  अंधेरे और उजाले में  नीर और क्षीर में   फंस जाता है मोही व्यक्ति अपने ही बनाए चक्रव्यूह में  जहां से उसका निकलना असंभव हो जाता है  कह सकता हूं  खुलकर दूसरे शब्दों में  कोई खास अंतर नहीं है मोहग्रस्तता और अंधेपन में  दोनों का पथ एक हो जाता है  मोहग्रस्तता से युक्त जब अंधा  व्यक्ति बैठकर  सत्ता के मचान पर   न्याय करने लगे  तब यह समझ लेना चाहिए कि  महाभारत होना तय है      चाहे वह  परिवार हो या देश हो  क्योंकि जब मुखिया  अंधा और मोही दोनों हो जाय  तब कोई नहीं  बचा सकता है एक और महाभारत होने से  संपूर्णानंद मिश्र प्रयागराज फूलपुर 7458994874

हिंदी  हिन्दुस्तान में - कवियत्री "अंजु परिहार"

  हिंदी    हिन्दुस्तान   में   कितनी   अच्छी   कितनी   प्यारी ,   कितनी   न्यारी   हिंदी    हमारी |     गली   में   हिंदी ,  गांव   में   हिंदी ,   शहर   में   हिंदी , राज्य   में   हिंदी ,   भारत   में   हिंदी   होती   थी   कभी |     आज   हमारे   गली , गांव, शहर ,    राज्य, देश-विदेश   में ,   अंग्रेजी   ही   अंग्रेजी |     फिर   भी   हमारा   देश   हैं   हिंदी ,   सरहद   पर   मर   मिटने   वाले   हैं   हिंदी ,   अस्तित्व   बिखेरा   हैं   हिंदी   ने ,   हिंदी   हिन्दुस्तान   में |