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जीवेषणा ही जीवित रखती है


मैं तुम्हें एक आशा दे रहा हूँ जो अभी और यहीं है । कल की चिंता क्यों करनी ? कल तो कभी आया ही नहीं । सदियों से कल तुम्हें घसीटता रहा है , और इतनी बार इस कल ने तुम्हें धोखा दिया है कि उससे चिपके रहने में अब कोई सार नजर नहीं आता । अब तो कोई मूर्ख ही कल से चिपका रह सकता है । जो अभी भी भविष्य में जी रहे हैं वे यही सिद्ध कर रहे हैं कि वे बिलकुल वेवकूफ हैं । मैं इसी क्षण को ऐसी गहन परितृप्ति बनाने की कोशिश कर रहा हूँ कि जीवेषणा की कोई जरूरत ही न रहे । जीवेषणा की जरूरत इसीलिए पड़ती है , क्योंकि तुम जीवित न हो । जीवेषणा किसी तरह तुम्हें सहारा देती रही है ; तुम नीचे की ओर फिसलते रहते हो और जीवेषणा तुम्हें उठाकर खड़ा करती है । मैं तुम्हें कोई नई जीवेषणा देने की कोशिश नहीं कर सका हूँ , मैं तुम्हें जीना सिखा सकता हूँ , बिना किसी इच्छा के , और आनंदित होकर जीने की क्षमता सबमें है । यह कल की आशा है जो तुम्हारे आज को विषाक्त करती रहती है । बीते हुए कल को भी भूल जाओ , आने वाले कल को भी भूल जाओ । आज ही सब कुछ है , आज ही हमारा है । इसी का हम उत्सव मनाएँ , और इसी को जीएँ । और इसको जीने से ही तुम इतने मजबूत हो जाओगे कि जीवेषणा के बिना ही तुम हर तरह की बीमारी का प्रतिरोध कर पाओगे । पूरी तरह से जीना , अपने आप में इतनी बड़ी शक्ति है कि न केवल तुम जीओगे बल्कि औरों में भी जीवन की ज्योति को जला सकोगे । और इस बात को सभी जानते हैं ...। जब कभी कहीं कोई महामारी फैलती है तो बड़े आश्चर्य की बात है कि डॉक्टरों और नौं पर उसका असर नहीं पड़ता । वे भी तुम्हारी ही तरह मनुष्य हैं और वे ज्यादा काम करते हैं , सारे समय मरीजों के बीच घिरे रहते हैं , उन्हें तो सबसे ज्यादा प्रभावित होना चाहिए ।

महामारी के दिनों में डॉक्टर , नर्से और रेडक्रॉस के लोग महीनों तक रोज सोलह - सोलह घंटे काम करते हैं , और इन्हें महामारी का कोई असर नहीं होता । क्या बात होगी ? ये भी तो दूसरे लोगों जैसे लोग हैं । कोई कमीज पर रेडक्रॉस लगा लेने से तो बीमारी नहीं घबराती । अगर ऐसा होता तो सबकी कमीज पर रेडक्रॉस लगा दो , लेकिन ऐसी बात नहीं है । , नहीं , ये लोग दूसरों की मदद करने में इतने संलग्न होते हैं कि इनके सामने कोई कल नहीं होता । यह क्षण उन्हें इतना घेर लेता है कि उनके पीछे भी कोई कल नहीं बचता । उनके पास न सोचने का समय होता है और न यह चिंता करने का समय होता है कि कहीं उन्हें इन्फेक्शन न पकड़ ले । जब लाखों लोग तुम्हारे आसपास मर रहे हों तो क्या तुम अपने बारे में सोच सकते हो ? तुम्हारी पूरी ऊर्जा लोगों की मदद करने में लगी हुई है । तुम अपने को पूरी तरह भूल जाते हो , और क्योंकि तुम अपने को भूल जाते हो इसलिए तुम प्रभावित नहीं हो सकते । जो व्यक्ति प्रभावित हो सकता था वह मौजूद ही नहीं है , वह तो काम में खोया हुआ है ।

इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुम कोई चित्र बना रहे हो , कोई मूर्ति गढ़ रहे हो या किसी मरते हुए मनुष्य की सेवा कर रहे हो , तुम क्या कर रहे हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता । फर्क इस बात से पड़ता है कि क्या तुम इस क्षण में पूरी तरह तल्लीन हो ? यदि तुम अभी इसी क्षण में तल्लीन हो तो किसी भी तरह के इन्फेक्शन से तुम मुक्त हो । जब तुम इतने तल्लीन होते हो तो तुम्हारा जीवन एक उद्दाम वेग बन जाता है । और तुम देख सकते हो कि सुस्त से सुस्त डॉक्टर भी महामारी के दिनों में , जब सैकड़ों लोग मर रहे होते हैं , अपनी सुस्ती को भूल जाता है । बूढ़े डॉक्टर अपनी उम्र भूल जाते हैं । क्यों ? क्योंकि उनकी पूरी जीवन ऊर्जा इसी क्षण पर लौट आती है । केवल ध्यान तुम्हारी ऊर्जा को इस क्षण पर लौटा सकता है । और फिर किसी आशा की या भविष्य के किसी स्वर्ग की जरूरत नहीं है । हर क्षण अपने आप में स्वर्ग है । साभार : ओशो इंटरनेशन फाउंडेशन

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