हम बात कर रहे हैं हीनता की
इसे विस्तार से समझने के लिए
एक कहानी सुनाता हूँ
एक बार पिता पुत्र दोनों दूर के शहर में अपना गधा बेचने जा रहे थे। मार्ग में किसी ने कहा अरे! भाई इन तीन गधों को देखो । जब गधा साथ है तो पिता-पुत्र पैदल क्यों चल रहे हैं? ये सुनकर बाप ने अपने बेटे को गधे पर बिठा दिया । कुछ आगे जाकर किसी ने कहा "कमाल का बेटा है भाई अपने बूढ़े बाप को पैदल चला रहा है" तो बेटा गधे से उतर गया और बाप को बैठा दिया । कुछ दूर जाकर किसी की बात सुनी 'कमाल का बाप है बेटा को पैदल चला रहा है' यह सुनकर बाप-बेटे दोनों गधे पर बैठ गए । फिर किसी ने कहा बेचारे गधे की तो फिकर ही नहीं यह बात सुनकर दोनों ने तय किया कि हम ही गधे को उठा लेते हैं । जब दोनों ने गधे को उठाने की कोशिश की तो गधे में भड़ककर लात मारी, उनकी पश्लियाँ तोड़ दी और भाग गया ।
हीन भावना से बंधे लोग क्या ऐसे नहीं जीते
हमारे सारे निर्णय लोंगों की धारणाओं पर आधारित होते हैं
हम यही विचार करते हुए जीवन बिता देते है 
की समाज क्या कहेगा?
अपने जीवन का प्रवाह लोंगों की बातें सुनकर बदलते रहते हैं
ऐसी हीन भावना हमें सफल नही होनी देती
क्या ये सत्य नहीं?
ये सत्य है कि समाज से बढ़कर कोई दर्पण नहीं
अपने आप का परिचय प्राप्त करने के लिए समाज के दर्पण में अपने प्रतिबिम्ब को देखना अत्यंत आवश्यक है ।
किन्तु ये भी सत्य है
दर्पण की मर्यादा है 
कि वो उल्टा चित्र दिखाता है
समाज के दर्पण में दिखने वाले प्रतिबिम्ब को सीधा करके देखना आवश्यक है
इसका क्या अर्थ है
हीन भावना से ग्रसित लोग सदा ही समाज के आधार पर निर्णय लेते हैं
इसके उलट श्रेष्ठता से बांधें लोग समाज को नकार देते हैं
अपनी ही बुद्धि पर भरोसा करते हैं
क्या दोनों ही भूल नहीं कर रहे हैं
इस भूल का उपाय क्या है?
बहुत सरल सा उपाय है
हम जितना समाज के दृष्टिकोण को महत्व देते हैं
उतना ही अपने दृष्टिकोण को महत्व दें
अपनी शक्तियों और मर्यादाओं को जानकर
आत्मविश्वास से भर जाएं
स्वयं ही हमारे निर्णय हमारे अपने होंगें
अहंकार से भरे नहीं होंगे
न श्रेष्ठता से लाभ होता है
न ही हीनता से लाभ होता है
सच्चे आत्मविश्वास से ही जीवन में सुख प्राप्त होता है
🙏👌👌👌
ReplyDeleteअति उत्तम
ReplyDeleteबहुत अच्छा
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