कोरोना के कहर ने
आज अपना रौद्र रूप दिखाया
रामकली की बहू को
रात में सदा के लिए
भूखे पेट सुलाया
प्रसव पीड़ा से वह
छटपटा रही थी
भूख- भूख कहकर
अपने एक हाथ से असहृय पीड़ा को सुला रही थी
पति लाचार था
बंडी के थैलों ने पहले ही आत्मसमर्पण कर दिया था
पुलिस की पिटाई ने
लक्ष्मण- रेखा में बांध कर
रख दिया था
रात में कुछ कमाने के लिए हिम्मत जुटाता था
सूर्योदय के बाद साहस उसका पुरानी साइकिल के पंचर-पहियों की तरह दो कदम चलने के लिए भी ज़वाब दे देता था
चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा था
अपनी हालत पर कभी वह इतना नहीं टूटा था
निरंतर अपनी जांगर से दो रोटी कमाने में हमेशा जुटा था
आज रात में उसकी सास रामकली ने बड़ी मिन्नत कर पड़ोस से एक पाव दूध ले आई थी
दो जान बचाने के लिए कसम खाई थी
लेकिन हालात ने उसको तोड़ दिया
प्रसव- कक्ष में पहुंचते ही एक विडाल ने अपने पंजे से दूध का पथ मोड़ दिया
वह असहाय सी खड़ी हो गई !
उसने स्वप्न को टूटते हुए
सैकड़ों बार देखा था
आज हकीक़त से पहली बार पाला पड़ा था
रिक्त गिलास लेकर अपनी झोपड़ी में जैसे ही आई
बहू को सदा के लिए सोते हुए पाई।
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
7458994874
mishrasampurna906@gmail.com
जय श्रीराम
ReplyDeleteअद्भुत रचना श्रीमान जी
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