ये वक़्त कभी ठहरा ही नहीं !
रफ्त़ा- रफ़्ता निकल जायेगा
उजाले कब तलक क़ैद रहेंगे
देखना ! कल सुबह अपनी रिहाई के गीत ज़रूर गायेंगे
माना कि
आज सारे जुगनूं तम से संधि कर
उजालों को चिढ़ा रहे हैं
जब अंधकार की छाती चीरकर
कल
रश्मियां विकीर्ण हो जायेंगी
तो इन्हीं में से कुछ जुगनूं
आफ़ताब से भी हाथ मिलायेंगे
ए मुसाफ़िर सब बीत जायेगा
ये वक्त कभी ठहरा ही नहीं!
आज आंजनेय के बध के लिए
बिसात बिछाई जा रही है
एक और सुरसा की ज़िंदगी
दांव पर लगाई जा रही है
लेकिन झूठ के वक्ष को चीरकर
जब
सत्य का सूर्य कल उदित होगा
तो देखना! यही अंधेरे
दिन में ही दिनकर
से हाथ मिलायेंगे
ए मुसाफ़िर सब बीत जायेगा
ये वक्त कभी ठहरा ही नहीं!
रचनाकार- डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
7458994874
mishrasampurna906@gmail.com
Very nice
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