नाजों से पाला था उसको , वो मेरी आँखों की तारा थी,   मां के सुख-दुख की साथी थी, बुढ़ापे वो एक सहारा थी ।   चोट लगे उसके तन पर तो, दर्द हमे भी होता था ।   पीड़ा में देख सुता को निज ,बेचैन रात को सोता था ।   कुछ ख्वाब सजाये थे उसने , अपनी नीली आंखों में ।   जैसे सजती कोमल कलियां ,पेड़ो के हर शाखों में।   उसे जला डाला तुमने , वासना की अपनी ज्वाला में ।   फिर फेंक दिया तन उसका तुमने, भड़की शोलो के ज्वाला में।   अहसास नही दर्दो का तुमको,जिसको उसने झेला था।   हिरनी सी डरी हुई बाला को ,जब जब तुमने छेड़ा था।   तेरी कुत्सित अभिलाषा ने ,उंसका जीना मुहाल किया।   तेरी खोटी नजरों के कारण , बाहर चलना बेहाल हुआ ।   अपमान दंश सी तेरी फब्ती, विष बाण से लगते थे दिल मे ।   अट्टाहास सी तेरी हंसी , शूलों से चुभते थे दिल मे ।   जो कृत्य किया तुमने उससे , माँ का दूध लजाया है ।   प्रेम पिता का, स्नेह बहन का , उन सबको तूने , गवाया है।   संस्कार से खाली झोली तेरी ,मर्यादा का भी अहसास नही ।   मात-पिता, कुल, गोत्र, वंश का , कर दिया है सत्यानाश सही।   हे ईश्वर इन्हें सद्बुद्धि दो, दिल का मैल निकल जाए।   म...