लौट रहा था
श्मशान से
गांव के
जग्गू दादा का
शवदाह करके
कुछ रुआंसा
था
क्योंकि
जल गया था
एक विचार
जिसके भार
को
ढोते वक़्त
झुक जाते
थे
दादा के
कंधे
आंखों से
नीर नहीं
बहते थे
रक्त
मार सहते
हुए अपनों की
दादा ने
प्रेम - फूल को
नफ़रत की
माटी में उगाया था
वे जानते
थे कि
बिना रक्त
जलाए
नहीं मिल
सकती
एक अदद
रोशनी
विचारों की
आज जल गई
दरअसल
शवदाह के
साथ- साथ
विचारों की
बाती भी
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर
वाराणसी
7458994874
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