अहं एक रोग है
इलाज
न हो
समय
पर इसका तो
अहं
का ज़हर
क्षत-विक्षत
कर देता है
शरीर
के सारे अवयव को
बहुत
बड़ा बाधक है यह
आध्यात्मिक
उत्कर्ष में
अहं
निर्माण करता है
एक
प्रशस्त पथ
काम, क्रोध
और लोभ का
अप्रतिम
परिचायक हैं
रावण
और कंस इस बात के
शरीर
रूपी दरख़्त के
शीर्ष
को छूती है जब
अहं
की लता
तो
भहराकर गिरने से
नहीं
कोई रोक सकता है
उस
दरख़्त को
तो
क्या यह मान लिया जाय
कि
अहं एक हाला है
जिसका
नशा
बुद्धि
और विवेक दोनों की
धीमी
हत्या करता है
और
नहीं प्रशांत होने देता है
हमारे
काम क्रोध और लोभ
के
ज्वालामुखी को
शिवपुर
वाराणसी
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