ख़ामोश
रहती हैं जड़ें
फड़फड़ाती
नहीं हैं
जहां
फड़फड़ाहट है
वहां जीवन
नहीं है
चाहे वृक्ष
हो या मनुष्य
जिसकी सोर
भूगर्भीय संबंधों की हवा का पान नहीं करती
वह शीघ्र
मर जाती है
चाहे
परिवार हो या प्रकृति
सारी
पीड़ाएं पीती हैं
नग्न आंखों
से इसीलिए प्रकृति
क्योंकि
उसे परवाह है अपने आत्मीयजन की।
समय- असमय
वह
क्रोध की
भट्ठी बुझाए रखती है
क्योंकि वह
जानती है
विनाश की
ड्योढ़ी तक जाता है
क्रोध का
पथ
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर
वाराणसी
7458994874
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