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फांकें में एक रात

 


गुलफ़ाम महज़ तेरह साल का था, जब उसके अब्बू फ़िरोज़ अल्ला को प्यारे हो गए। प्रयागराज के एक छोटे से कस्बे में एक छोटी सी दुकान है, जहां फ़िरोज़ बाइक बनाने का काम करता था।चालीस साल की अवस्था थी। बेहद चुस्त-दुरुस्त, शरीर गठा हुआ, नीली आंखें, हिरण की तरह फुर्तीला। एक अलग ही सांचे में पकाकर अल्ला ताला ने उसको निकाला था। व्यवहार में विनम्रता। ईमानदारी तो उसके चेहरे के दर्पण से ही अपना प्रतिबिंब दिखा देती थी। उसके पूर्वज बिहार से बहुत पहले ही आकर बस गए थे। उन दिनों चंपारण में आज की तरह ही एक महामारी आई थी, जिसमें गुलफ़ाम के परदादा सब कुछ छोड़कर जान बचाकर यहां आ गए थे तब से यह परिवार यहीं रहने लगा। फ़िरोज अच्छा मैकेनिक था इसमें किसी तरह का कोई संशय नहीं था, मीठी ज़ुबान थी। किसी भी ग्राहक को निराश नहीं करता था। देर सबेर सभी का काम कर देता था, पैसा जो दे दो उसी में संतोष कर लेता था। संतोष जिसके मन में आ जाय बड़े से बड़ा प्रलोभन उसकी ईमान को नहीं डिगा सकता है। उस रात को गुलफ़ाम कभी भी नहीं भूल सकता जिस दिन महज़ दो सौ ग्राम दूध पीकर पेट सहलाते हुए निद्रा देवी को वह नींद के लिए पुकार रहा था। फ़िरोज को लाकडाउन की वज़ह से एक पैसा भी नहीं मिला।

उस दिन वह बेहद निराश था। यह परिवार रोज़ कुआं खोदकर पानी पीता था। आज उसे चूल्हे की चिंता सर्पिणी की भांति रह- रह डंक मार रही थी। आज घर में क्या बनेगा ?  घर पहुंचते ही छोटी बिटिया सकीना साइकिल पकड़ लेती थी। फ़िरोज उसके गालों को चूमने लगता था। इसके बाद उसे पांच  रुपए वाला पारले बिस्कुट उसके हाथों में दे देता था। यह नित्य का काम था। कुछ समय तक वह वात्सल्य- सुख की सरिता में जी भर नहाता था। आज सकीना सोई हुई थी। घर में पहुंचते ही पत्नी अमीना का चेहरा बेहद निराश था;  क्योंकि फ़िरोज़ के हाथ में कोई थैला नहीं था। घर में केवल आध पाव दाल बचा हुआ था। इसके अलावा सारे डिब्बे झांय- झांय कर रहे थे। अमीना ने फ़िरोज़ से कहा कि आज क्या खिलाएंगे बच्चों को! हम लोग तो पानी पीकर भी रात गुजार लेंगे। अमीना भी आठ तक पढ़ी थी। महामारी के प्रकोप से परिचित थी, समझ रही थी धंधा ऐसे समय में मंदा हो गया है। ऊपर से पुलिस वालों का आतंक। कई परिवार फूलपुर कस्बे से अपना मकान औने पौने दाम में बेचकर अपने- अपने गांव  में ही कुछ करने के इरादे से चले गए थे, लेकिन फ़िरोज़ के कुल पांच बच्चे थे; सात लोगों का कुनबा लेकर कहां जाता वह! वैसे भी गांव में कौन सा पारिजात वृक्ष था, जो उसकी भूख मिटा देता।उस दिन घर में कुछ नहीं बन पाया। पड़ोस से बड़ी मिन्नतें कर आध सेर दूध लेकर अमीना आई और उसमें आध सेर पानी मिलाकर किसी तरह बच्चों की भूख को शांत किया। आकाश में तारे टिमटिमा ही रहे थे कि फ़िरोज़ उठ गया।  उसे नींद नहीं लगी,और सकीना के रोने की आवाज़ ने उसके भ्रम को पुष्ट कर दिया। वह समझ गया कि उसे भूख लगी है। अमीना ने उसे अपनी गोद में ले लिया ; कुछ देर तक तो वह शांत थी, लेकिन फिर वह रोने लगी। अमीना की छाती भी सूख चुकी थी। उसको कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। उसने उसे दूध की जगह पानी पिलाया। अमीना की आंखों से आंसू झरझर बहने लगे। इसी दुश्चिंताओं के स्वप्न के दरिया में फ़िरोज कब डूब गया। उसे नींद आ गई। सुबह के सात बज चुके थे। भगवान भुवन भास्कर अपनी अर्चियों से पूरी कायनात को नहला रहे थे, अमीना ने आवाज़ दी कि क्या आज दुकान नहीं जाओगे ? वह हड़बड़ा कर उठा और देखा कि दिन काफी चढ़ चुके हैं, वह आधे घण्टे के भीतर ही तैयार हो गया। अपनी साइकिल से चल पड़ा। रात का भयावह दृश्य उसके मस्तिष्क पर किसी मयूर की तरह नृत्य कर रहा था; वह जानता था कि फांकें में एक रात तो बीत गई, अगर आज कुछ बोहनी नहीं होगी तो कैसे चलेगा! इसी उधेड़बुन में लगभग पांच सौ मीटर ही चला होगा कि उसकी साइकिल असंतुलित हो गई  और वह डिबाइडर से टकराते हुए गिर पड़ा। फूलपुर ब्रिज से तेज़ रफ़्तार से आ रही ट्रक उसे रौंदते हुए निकल चुकी थी, और वह वहीं इस असार संसार को छोड़कर अल्ला को प्यारा हो गया। उसके मुहल्ले का अख़्तर इफको टाउनशिप में सफाई का काम कांटैक्ट बेस पर करता था, वह उधर से जा रहा था; देखा कि बीसों  लोगों की भीड़ इकट्ठी है।वह रुक गया, और उसने देखा कि यह तो फ़िरोज़ है; उसने अमीना के घर फ़ौरन सूचना भिजवायी कि फ़िरोज़ का एक्सीडेंट हो गया है अमीना भागते-भागते आ पहुंची और फ़िरोज़ को देखते ही बेहोश होकर गिर पड़ी। कुछ देर बाद ही  पुलिस वाले आ गए और पंचनामा हेतु अपनी कार्रवाई करने लगे। उधर फ़िरोज़ के घर में मातम छा गया था।

 

सम्पूर्णानंद मिश्र

प्रयागराज फूलपुर

7458994874

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