Skip to main content

परिवर्तन

परिवर्तनशील है यह संसार

यह ध्रुव सत्य है

नहीं है इसमें कोई संदेह

आज जो चल रहा है

कल बिल्कुल नहीं होगा 

नहीं संकोच करती है 

प्रकृति परिवर्तन में इसीलिए

संकोच की मुट्ठी खोल देती है

लुटाती है अपनी संपदा  

दोनों हाथों से 

जानती है कि

अंश है इसमें सबका 

और जिसका है 

उसको मिलना चाहिए 

अपनी आत्मा पर कार्पण्य का बोझ नहीं ढो पाती है इसीलिए

बावजूद नहीं सीख पाता है

मनुष्य कुछ भी उससे 

समा लेना चाहता है 

समस्त सांसारिक वैभव

को अपने पेट की भरसांय में 

गिद्ध दृष्टि रहती है दूसरे के हिस्सों में भी 

जरायम की दुनिया

तक ले जाता है दूसरों के अंश

को निगलने का सपाट रास्ता

भयाक्रांत हो जाता है

परिवर्तन के

प्रभंजन से ही मनुष्य 

नहीं सामना करना चाहता है 

बदलाव के अंधड़ का 

क्योंकि

वह जानता है कि

परिवर्तन की आंधी

उड़ा ले जाती 

  सब कुछ 

पहुंचाती है

 सबसे ज़्यादा चोट 

अहंकार की थूनी को 


   संपूर्णानंद मिश्र

    प्रयागराज फूलपुर

    7458994874

Comments

Popular posts from this blog

नया साल ! क्या सचमुच नया है ?

31 दिसम्बर की रात, पूरा माहौल रंगीन और जश्न में डूबा है। उत्तेजना बढ़ती जाती है और इकतीस दिसंबर की आधी रात हम सोचते हैं कि पुराना साल रात की सियाही में डुबोकर कल सब कुछ नया हो जाएगा। यह एक रस्म है जो हर साल निभाई जाती है, जबकि हकीकत यह है कि दिन तो रोज ही नया होता है, लेकिन रोज नए दिन को न देख पाने के कारण हम वर्ष में एक बार नए दिन को देखने की कोशिश करते हैं। दिन तो कभी पुराना नहीं लौटता, रोज ही नया होता है, लेकिन हमने अपनी पूरी जिंदगी को पुराना कर डाला है। उसमें नए की तलाश मन में बनी रहती है। तो वर्ष में एकाध दिन नया दिन मानकर अपनी इस तलाश को पूरा कर लेते हैं। यह सोचने जैसा है जिसका पूरा वर्ष पुराना होता हो उसका एक दिन नया कैसे हो सकता है? जिसकी पूरे साल पुराना देखने की आदत हो वह एक दिन को नया कैसे देख पाएगा? देखने वाला तो वही है, वह तो नहीं बदल गया। जिसके पास ताजा मन हो वह हर चीज को ताजी और नई कर लेता है, लेकिन हमारे पास ताजा मन नहीं है। इसलिए हम चीजों को नया करते हैं। मकान पर नया रंग-रोगन कर लेते हैं, पुरानी कार बदलकर नई कार ले लेते हैं, पुराने कपड़े की जगह नया कपड़ा लाते हैं। हम...

Teachers day शिक्षा व्यवस्था बनाम शिक्षा

कोई भी व्यक्ति ठीक अर्थों में शिक्षक तभी हो सकता है जब उसमें विद्रोह की एक अत्यंत ज्वलंत अग्नि हो। जिस शिक्षक के भीतर विद्रोह की अग्नि नहीं है वह केवल किसी न किसी निहित, स्वार्थ का, चाहे समाज, चाहे धर्म, चाहे राजनीति, उसका एजेंट होगा। शिक्षक के भीतर एक ज्वलंत अग्नि होनी चाहिए विद्रोह की, चिंतन की, सोचने की। लेकिन क्या हममें सोचने की अग्नि है और अगर नहीं है तो आ एक दुकानदार हैं। शिक्षक होना बड़ी और बात है। शिक्षक होने का मतलब क्या है? क्या हम सोचते हैं- सारी दुनिया में सिखाया जाता है बच्चों को, बच्चों को सिखाया जाता है, प्रेम करो! लेकिन कभी  विचार किया है कि पूरी शिक्षा की व्यवस्था प्रेम पर नहीं, प्रतियोगिता पर आधारित है। किताब में सिखाते हैं प्रेम करो और पूरी व्यवस्था, पूरा इंतजाम प्रतियोगिता का है। जहां प्रतियोगिता है वहां प्रेम कैसे हो सकता है। जहां काम्पिटीशन है, प्रतिस्पर्धा है, वहां प्रेम कैसे हो सकता है। प्रतिस्पर्धा तो ईर्ष्या का रूप है, जलन का रूप है। पूरी व्यवस्था तो जलन सिखाती है। एक बच्चा प्रथम आ जाता है तो दूसरे बच्चों से कहते हैं कि देखो तुम पीछे रह गए और यह पहले आ ...

Online MCQ test Vachya वाच्य

Loading…