यह मेरा सौभाग्य कि अब तक, मैं जीवन में लक्ष्यहीन हूं।
मेरा भूत भविष्य न कोई, वर्तमान में चिर नवीन हूं।
कोई निश्चित दिशा नहीं है, मेरी चंचल गति की बंधन।
कहीं पहुंचने की न त्वरा में, आकुल व्याकुल है मेरा मन।
खड़ा विश्व के चैराहे पर, अपने में ही सहज लीन हूं।
मुक्त दृष्टि निरुपाधि निरंजन, मैं विमुग्ध भी उदासीन हूं।
ये कितना सौभाग्य है मेरा, कि यह जीवन लक्ष्यहीन है,
चलने वाले ढे़र यहां पर, मेरा जीवन पथ-विहीन है।।
कोई निश्चित दिशा नहीं है, मेरी चंचल गति की बंधन,
यह सारा आकाश है मेरा, उडूंं जहां चाहे मेरा मन।
रहजन से है नहीं कोई भय, मेरे पास नहीं कोई धन,
सता नहीं सकते हैं मुझको, करने वाले मार्ग-प्रदर्शन।
क्योंकि मंजिल नहीं है कोई, अपने आप में पथिक लीन है,
ये कितना सौभाग्य है मेरा, कि यह जीवन लक्ष्यहीन है।।
कितने वृक्षों पर मैं सोया, उनकी कोई याद नहीं अब,
मित्र मिले-बिछुड़े कब रोया, अलविदा कहकर भूल गया सब।
नहीं तनिक भी फिक्र हृदय में, आगे क्या होगा कैसे कब,
एक भरोसा है खुद पर बस, जब जो होगा देखूंगा तब।
बिना याद और बिना आस के, सब कुछ कैसा चिर-नवीन है,
ये कितना सौभाग्य है मेरा, कि यह जीवन लक्ष्यहीन है।।
जब तन में उल्हास भरा हो, पर फैलाकर तिर जाता हूं,
शाम थकित हो किसी नीड़ में सिकुड़-सिमट के सो जाता हूं।
जीवन तो साधारण है पर, श्वांस-श्वांस में सुख पाता हूं,
तभी तो मैं फिर-फिर प्रभात में, इतने मधुर गीत गाता हूं।
आनंद का बस एक राज है- गति मेरी गंतव्यहीन है।
ये कितना सौभाग्य है मेरा, कि यह जीवन लक्ष्यहीन है।।
स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती
अच्छी कविता है सर। धन्यवाद।
ReplyDeleteअच्छी कविता है सर। धन्यवाद।
ReplyDeleteVery nice sir
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता सर।
DeleteBhut umda sir
ReplyDeleteअत्यंत हृदयस्पर्शी।।
ReplyDeleteBitter truth of life
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता है सर। धन्यवाद।
ReplyDeleteVery nice poem sir👌
ReplyDeleteWonderful sir
ReplyDeleteबेहतरीन कविता.....
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