व्यक्ति अंधा हो जाता है
आकाश को छूने की होड़ में
प्रतिस्पर्धी हो जाता है
भेद नहीं कर पाता है
अक्सर ऐसा होता है
सही ग़लत के निर्णय में
ग्लैमर की दुनिया
की चकाचौंध में
स्वप्न बिखर जाते हैं
कई अभिनेताओं के
कई के टूट जाते हैं
आत्मीयता नहीं होती है
क्योंकि वहां
कोई अपना नहीं होता है
कोई हमदर्द नहीं होता
किसी का कोई वहां
कामयाबी का स्वर
सुनने के लिए
गलाकाट प्रतियोगिता में
लाश पर चढ़कर किसी के
प्रतिभाग करना
वहां की संस्कृति है
कोई मर रहा है वहां
या जी रहा है
सुखी है या दुखी है
किसी में नहीं है
यह जानने की फ़ुर्सत
अवसादग्रस्तता की तरफ़
ले जाती है यह स्थिति
और अवसादग्रस्तता
"आत्महत्या"
का एकांतिक पथ
दिखाती है
संपूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874
सुख-दुख की ना जाने कितनी*
ReplyDeleteफाईले रखी है इसमें...
कौन कहता है कि सीने में
अलमारियाँ नहीं होती...!!
👌👌👌
ReplyDeleteSometimes life is so unfair
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