मरा नहीं हूं
डरा नहीं हूं
कायर नहीं हूं
मैं तो अपनी कविता
का
एक शायर हूं
चेहरे की चुप्पियों को
तोड़ देना चाहता हूं
मुर्दे भी बोल सकें
उन्हें
प्रशिक्षित कर
देना चाहता हूं
ताकि किसी चांद
के खिलाफ
बोलने की वर्णमाला
का सही प्रयोग
वे कर सकें
अगर इन तथाकथित चांदों
को यहीं नहीं रोकोगे
तो बारंबार यह
तुम्हारे ऊपर थूकेंगे
ये
थाली के बहाने
तुम्हें
एक भद्दी गाली
देंगे !
अब बिफरने का
वक्त नहीं है
सन्नाटे चीरने
का समय है
शांति सौहार्द के लिए
एक बार अशांति भी
खरीद लो
नहीं तो तुम्हारे बिक्रेता
घात लगाए बैठे हैं
ये बड़े शातिर हैं
कुछ मांस से युक्त
हड्डियां फ़ेंक देंगे
तुम बड़ी उपलब्धि
के नाम पर
उलझ जागोगे
और ये मरा हुआ समझकर
तुम्हारी आत्मा भी
बेच डालेंगे
रचनाकार- डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र जी की अन्य कविताएं पढ़ें
डरा नहीं हूं
कायर नहीं हूं
मैं तो अपनी कविता
का
एक शायर हूं
चेहरे की चुप्पियों को
तोड़ देना चाहता हूं
मुर्दे भी बोल सकें
उन्हें
प्रशिक्षित कर
देना चाहता हूं
ताकि किसी चांद
के खिलाफ
बोलने की वर्णमाला
का सही प्रयोग
वे कर सकें
अगर इन तथाकथित चांदों
को यहीं नहीं रोकोगे
तो बारंबार यह
तुम्हारे ऊपर थूकेंगे
ये
थाली के बहाने
तुम्हें
एक भद्दी गाली
देंगे !
अब बिफरने का
वक्त नहीं है
सन्नाटे चीरने
का समय है
शांति सौहार्द के लिए
एक बार अशांति भी
खरीद लो
नहीं तो तुम्हारे बिक्रेता
घात लगाए बैठे हैं
ये बड़े शातिर हैं
कुछ मांस से युक्त
हड्डियां फ़ेंक देंगे
तुम बड़ी उपलब्धि
के नाम पर
उलझ जागोगे
और ये मरा हुआ समझकर
तुम्हारी आत्मा भी
बेच डालेंगे
रचनाकार- डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र जी की अन्य कविताएं पढ़ें
सुंदर कविता।
ReplyDeleteBahut badhiya sir
ReplyDeleteGood poem
ReplyDeleteअनुपम रचना
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