Skip to main content

स्वामी विवेकानंद- युवाओं के लिए संदेश


स्वामी विवेकानंद जी
अमरीका से वापिस आए तो
बंगाल में अकाल पड़ा था।
तो वे तत्‍क्षण आकर अकालग्रस्त
क्षेत्र में सेवा करने चले गए।

स्वामी जी अमरीका से लौटे,
भारत की पताका फहरा कर लौटे!
तो पंडित दर्शन करने आए थे,
लेकिन जब पंडित आए तो
स्वामी विवेकानंद ने न तो
वेदांत की कोई बात की,
न ब्रह्म की कोई चर्चा की,
कोई अध्यात्म, अद्वैत
की बात ही न उठाई,
वे तो अकाल की बात करने लगे
और वे तो जो दुख फैला था चारों
तरफ उससे ऐसे दुखी हो गए कि
खुद ही रोने लगे
पंडित एक—दूसरे की तरफ देख
कर मुस्कुराने लगे कि यह
असार संसार के लिए रो रहा है।
यह शरीर तो मिट्टी है और यह रो रहा है,
यह कैसा ज्ञानी!

विवेकानंद जी ने पूँछा आप हंसते क्यों हैँ?
तो उनके प्रधान ने
कहा कि हंसने की बात है।
हम तो सोचते थे
आप परमज्ञानी हैं।
आप रो रहे हैं?
शास्त्रों में साफ कहा है
कि हम तो स्वयं ब्रह्म हैं,
न जिसकी कोई मृत्यु होती,
न कोई जन्म होता।
और आप ज्ञानी हो कर रो रहे हैं?
हम तो सोचते थे,
हम परमज्ञानी का दर्शन करने आए हैं,
आप अज्ञान में डूब रहे हैं!
विवेकानंद का डंडा पास पड़ा था,
उन्होंने डंडा उठा लिया,
टूट पड़े उस आदमी पर।
उसके सिर पर डंडा रख कर
बोले कि अगर तू सचमुच
ज्ञानी है तो अब बैठ,
तू बैठा रह, मुझे मारने दे।
तू इतना ही स्मरण
रखना कि तू शरीर नहीं है।
विवेकानंद का वैसा
रूप—
वे हट्टे—कट्टे आदमी थे—और
हाथ में उनके बड़ा डंडा!
वह तो गिड़गिड़ाने लगा कि महाराज,
रुको, यह क्या करते हो? अरे,
यह कोई ज्ञान की बात है?
हम तो सत्संग करने आए हैं।
यह कोई उचित मालूम होता है?
वह तो भागा।
उसने देखा कि यह आदमी तो
जान से मार डाल दे सकता है।
उसके पीछे बाकी पंडित भी खिसक गए।
विवेकानंद ने कहा :
शास्त्र को दोहरा देने से
कुछ ज्ञान नहीं हो जाता।
पांडित्य ज्ञान नहीं है।
पर—उपदेश कुशल बहुतेरे!
वह जो पंडित ज्ञान
की बात कर रहा था,
तोतारटत थी।
उस तोतारटंत में कहीं भी
कोई आत्मानुभव नहीं है।
शास्त्र की थी, स्वयं की नहीं थी।
और जो बात स्वयं की न हो,
वह दो कौड़ी की है।

Comments

  1. फारच सुंदर विचार आहे. पर लोग समझते नहीं, दिखावे पर ही हर कोई मरता है।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

नया साल ! क्या सचमुच नया है ?

31 दिसम्बर की रात, पूरा माहौल रंगीन और जश्न में डूबा है। उत्तेजना बढ़ती जाती है और इकतीस दिसंबर की आधी रात हम सोचते हैं कि पुराना साल रात की सियाही में डुबोकर कल सब कुछ नया हो जाएगा। यह एक रस्म है जो हर साल निभाई जाती है, जबकि हकीकत यह है कि दिन तो रोज ही नया होता है, लेकिन रोज नए दिन को न देख पाने के कारण हम वर्ष में एक बार नए दिन को देखने की कोशिश करते हैं। दिन तो कभी पुराना नहीं लौटता, रोज ही नया होता है, लेकिन हमने अपनी पूरी जिंदगी को पुराना कर डाला है। उसमें नए की तलाश मन में बनी रहती है। तो वर्ष में एकाध दिन नया दिन मानकर अपनी इस तलाश को पूरा कर लेते हैं। यह सोचने जैसा है जिसका पूरा वर्ष पुराना होता हो उसका एक दिन नया कैसे हो सकता है? जिसकी पूरे साल पुराना देखने की आदत हो वह एक दिन को नया कैसे देख पाएगा? देखने वाला तो वही है, वह तो नहीं बदल गया। जिसके पास ताजा मन हो वह हर चीज को ताजी और नई कर लेता है, लेकिन हमारे पास ताजा मन नहीं है। इसलिए हम चीजों को नया करते हैं। मकान पर नया रंग-रोगन कर लेते हैं, पुरानी कार बदलकर नई कार ले लेते हैं, पुराने कपड़े की जगह नया कपड़ा लाते हैं। हम...

Teachers day शिक्षा व्यवस्था बनाम शिक्षा

कोई भी व्यक्ति ठीक अर्थों में शिक्षक तभी हो सकता है जब उसमें विद्रोह की एक अत्यंत ज्वलंत अग्नि हो। जिस शिक्षक के भीतर विद्रोह की अग्नि नहीं है वह केवल किसी न किसी निहित, स्वार्थ का, चाहे समाज, चाहे धर्म, चाहे राजनीति, उसका एजेंट होगा। शिक्षक के भीतर एक ज्वलंत अग्नि होनी चाहिए विद्रोह की, चिंतन की, सोचने की। लेकिन क्या हममें सोचने की अग्नि है और अगर नहीं है तो आ एक दुकानदार हैं। शिक्षक होना बड़ी और बात है। शिक्षक होने का मतलब क्या है? क्या हम सोचते हैं- सारी दुनिया में सिखाया जाता है बच्चों को, बच्चों को सिखाया जाता है, प्रेम करो! लेकिन कभी  विचार किया है कि पूरी शिक्षा की व्यवस्था प्रेम पर नहीं, प्रतियोगिता पर आधारित है। किताब में सिखाते हैं प्रेम करो और पूरी व्यवस्था, पूरा इंतजाम प्रतियोगिता का है। जहां प्रतियोगिता है वहां प्रेम कैसे हो सकता है। जहां काम्पिटीशन है, प्रतिस्पर्धा है, वहां प्रेम कैसे हो सकता है। प्रतिस्पर्धा तो ईर्ष्या का रूप है, जलन का रूप है। पूरी व्यवस्था तो जलन सिखाती है। एक बच्चा प्रथम आ जाता है तो दूसरे बच्चों से कहते हैं कि देखो तुम पीछे रह गए और यह पहले आ ...

Online MCQ test Vachya वाच्य

Loading…