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हिन्दी वर्णमाला का क्रम से कवितामय प्रयोग

चानक,
कर मुझसे,
ठलाता हुआ पंछी बोला।

श्वर ने मानव को तो-
त्तम ज्ञान-दान से तौला।

पर हो तुम सब जीवों में-
ष्य तुल्य अनमोल,
क अकेली जात अनोखी।

सी क्या मजबूरी तुमको-
ट रहे होंठों की शोख़ी!

र सताकर कमज़ोरों को,
अंग तुम्हारा खिल जाता है;
अ:तुम्हें क्या मिल जाता है?


हा मैंने- कि कहो,
ग आज सम्पूर्ण,
र्व से कि- हर अभाव में भी,
र तुम्हारा बड़े मजे से,
ल रहा है।

छोटी सी- टहनी के सिरे की
गह में, बिना किसी
गड़े के, ना ही किसी-
कराव के पूरा कुनबा पल रहा है।

ठौर यहीं है उसमें,
डाली-डाली, पत्ते-पत्ते;
लता सूरज-
रावट देता है।

कावट सारी, पूरे
दिवस की-तारों की लड़ियों से
न-धान्य की लिखावट लेता है।

नादान-नियति से अनजान अरे,
प्रगतिशील मानव,
रेब के पुतलो,
न बैठे हो समर्थ।
ला याद कहाँ तुम्हे,
नुष्यता का अर्थ?

ह जो थी, प्रभु की,
चना अनुपम.......

लालच-लोभ के
शिभूत होकर,
र्म-धर्म सब तजकर।
ड्यंत्रों के खेतों में,
दा पाप-बीजों को बोकर।

होकर स्वयं से दूर-
क्षणभंगुर सुख में अटक चुके हो।
त्रास को आमंत्रित करते-
ज्ञान-पथ से भटक चुके हो।

Comments

  1. चमत्कार!अद्भुत!
    किसकी रचना है सर?

    ReplyDelete
  2. चमत्कार!अद्भुत!
    किसकी रचना है सर?

    ReplyDelete
  3. चमत्कार!अद्भुत!
    किसकी रचना है सर?

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर,अद्भुत

    ReplyDelete

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