प्रेम में ईर्ष्या हो तो प्रेम ही नहीं है
प्रेम में भय हो तो प्रेम ही नहीं है
प्रेम के नाम से कुछ और ही रोग है
प्रेम के नाम से
दूसरे पर मालकियत करने का मजा
दूसरे व्यक्ति का साधन की भाँति उपयोग
प्रेमी अगर विश्वास न कर सके,
श्रद्धा न कर सके,
भरोसा न कर सके,
तो प्रेम में फूल खिले ही नहीं।
ईर्ष्या, जलन, वैमनस्य, द्वेष,
भय घृणा के फूल हैं।
जो प्रेम से चूका....
वह परमात्मा से भी चूक जाता है।
असली प्रेम उसी दिन उदय होता है
जिस दिन इस सत्य को समझ पाते हैं
कि सब तरफ परमात्मा विराजमान है।
प्रेम में भय हो तो प्रेम ही नहीं है
प्रेम के नाम से कुछ और ही रोग है
प्रेम के नाम से
दूसरे पर मालकियत करने का मजा
दूसरे व्यक्ति का साधन की भाँति उपयोग
प्रेमी अगर विश्वास न कर सके,
श्रद्धा न कर सके,
भरोसा न कर सके,
तो प्रेम में फूल खिले ही नहीं।
ईर्ष्या, जलन, वैमनस्य, द्वेष,
भय घृणा के फूल हैं।
जो प्रेम से चूका....
वह परमात्मा से भी चूक जाता है।
असली प्रेम उसी दिन उदय होता है
जिस दिन इस सत्य को समझ पाते हैं
कि सब तरफ परमात्मा विराजमान है।
शुभ रात्रि🙏🙏
ReplyDeleteशुभ रात्रि🙏🙏
ReplyDeleteशुभ रात्रि🙏🙏
ReplyDeleteबहुत खुब।
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