दिवाली आई और चली गई
पर दादी की याद आई
और आकार ही रह गई
याद आती है दादी
जब दिवाली पूजन के बाद
मिठाई से भरी थाली
हाथ में थमाते हुए कहा था
चलो सभी को प्रसाद देकर आते हैं
और मैंने कहा था नहीं
मेरी मिठाई ख़त्म हो जायेगी...
और उन्होंने कहा था
अरे! बेटा ये मिठाई नहीं
प्रसाद है लक्ष्मी जी का
इसको बांटने से
प्रेम बढ़ता है,
और सभी देवता प्रसन्न होते हैं
प्रेम क्या होता है?
देवता क्या होते हैं?
ये सवाल नहीं समझ आते थे
पर दादी के साथ चल दिया
और देखा था उस दिन
कितने आतुर होकर
मिले थे लोग....
उनके आँखें चमक जाती थी
दूर से ही देखकर
आवाज में क्या खनक थी
अरे मुन्ना प्रसाद लेकर आया है..…..
आज याद आती है बहुत
आज भी चमकती है आंखें
पर मोबाइल की स्क्रीन पर....
भर गया है मोबाइल
तरह तरह के व्यंजनों से..
आँखों में लक्ष्मी का वास है
पर नदारद है प्रेम की झलक
सोचता हूँ .....
मोबाइल में स्विच ऑफ का बटन है
पर मन का बटन कहीं खो गया है.....
धर्मेन्द्र भारद्वाज
सच में,आपकी कविता ने बचपन की याद दिला दी।
ReplyDeleteधन्यवाद मेडम, आपसे बहुत सीखा है ।
ReplyDeleteNischal Prem Sir🙏🙏🙏
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
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