रस
काव्य के पठन या श्रवण में जो आनंद प्राप्त होता है | वही काव्य में रस कहलाता है
स्थायी भाव
रस से जिस भाव की अनुभूति होती है वह रस का स्थायी भाव होता है |
रस के प्रकार एवं उनके स्थायी भाव
रस नौ हैं -
क्रमांक | रस का प्रकार | स्थायी भाव |
1. | शृंगार रस | रति |
2. | हास्य रस | हास |
3. | करुण रस | शोक |
4. | रौद्र रस | क्रोध |
5. | वीर रस | उत्साह |
6. | भयानक रस | भय |
7. | वीभत्स रस | घृणा, जुगुप्सा |
8. | अद्भुत रस | आश्चर्य |
9. | शांत रस | निर्वेद |
कुछ विद्वान वात्सल्य और भक्ति रस को 10 वां एवं 11 वां रस मानते हैं |
विभाव
रस की उत्पत्ति के कारण को विभाव कहा जाता है |
विभाव दो प्रकार के होते हैं :-
1. आलंबन विभाव
भावों का उद्गम जिस मुख्य भाव या वस्तु के कारण हो वह काव्य का आलंबन कहा जाता है।
2. उद्दीपन विभाव
स्थायी भाव को जाग्रत रखने में सहायक कारण उद्दीपन विभाव कहलाते हैं।
अनुभाव
भावों का अनुगमन करे वह अनुभाव कहलाता है।
संचारी या व्यभिचारी भाव
जो भाव केवल थोड़ी देर के लिए स्थायी भाव को पुष्ट करने के निमित्त सहायक रूप में आते हैं और तुरंत लुप्त हो जाते हैं, वे संचारी भाव हैं।
संचारी या व्यभिचारी भावों की संख्या ३३ मानी गयी है - निर्वेद, ग्लानि, शंका, असूया, मद, श्रम, आलस्य, दीनता, चिंता, मोह, स्मृति, धृति, व्रीड़ा, चापल्य, हर्ष, आवेग, जड़ता, गर्व, विषाद, औत्सुक्य, निद्रा, अपस्मार (मिर्गी), स्वप्न, प्रबोध, अमर्ष (असहनशीलता), अवहित्था (भाव का छिपाना), उग्रता, मति, व्याधि, उन्माद, मरण, त्रास और वितर्क।
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