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कौए

 आंसू है दु:खी कौओं  की आंखों में  गहरे सदमे में हैं नहीं ग्रहण किए अन्न का एक भी कण आज  दरअसल‌  निरंतर निर्मम प्रहार किया गया है इनकी चोंचों पर  सभ्य मानवों द्वारा आज भी दर-दर भटक रहे हैं  पूर्वजन्म की गलती से अपनी रिहाई की अर्जी लिए छत की मुंडेर पर  रोज घंटे दो घंटे बैठकर   उड़ जाते हैं  फिर निराश होकर अपने सीने में दफ़नाते हैं  उपेक्षा के दर्द को  भूखे प्यासे  आस लगाए  थक जाते हैं  और पेट सहलाते हुए सो जाते हैं नहीं देख रहे हैं  पितृ विसर्जन पर  अन्न की तरफ़  क्योंकि उनकी अतृप्त आत्मा नहीं गवाही दे रही है अन्न का एक कण भी छूने की सम्पूर्णानंद मिश्र शिवपुर वाराणसी 7458994874

उजड़ने पर

 चिड़िया अनशन करती है कुछ समर्थ चिड़ियों को लेकर  उजड़ने पर  अपना घोंसला  विरुद्ध हुए अपने इस  असहनीय अमानवीय अत्याचारों के ख़िलाफ़  रक्तिम नेत्रों से   ढूंढ़ती है  उस हूण को  शहर की तरफ़ क्योंकि  उजड़ने की पीड़ा वह जानती है  और असमय का उजाड़ निर्दोष को दिए गए किसी मृत्युदंड से कम नहीं है सम्पूर्णानंद मिश्र शिवपुर वाराणसी 7458994874

फीचर लेखन

‘फ़ीचर’ (Feature) अंग्रेजी भाषा का शब्द है। इसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के फैक्ट्रा (Fectura) शब्द से हुई है। विभिन्न शब्दकोशों के अनुसार इसके लिए अनेक अर्थ हैं, मुख्य रूप से इसके लिए स्वरूप, आकृति, रूपरेखा, लक्षण, व्यक्तित्व आदि अर्थ प्रचलन में हैं। ये अर्थ प्रसंग और संदर्भ के अनुसार ही प्रयोग में आते हैं। अंग्रेज़ी के फ़ीचर शब्द के आधार पर ही हिंदी में भी ‘फ़ीचर’ शब्द को ही स्वीकार लिया गया है। हिंदी के कुछ विद्वान इसके लिए ‘रूपक’ शब्द का प्रयोग भी करते हैं लेकिन पत्रकारिता के क्षेत्र में वर्तमान में ‘फ़ीचर’ शब्द ही प्रचलन में है। फीचर का स्वरूप समकालीन घटना या किसी भी क्षेत्र विशेष की विशिष्ट जानकारी के सचित्र तथा मोहक विवरण को फीचर कहा जाता है। इसमें मनोरंजक ढंग से तथ्यों को प्रस्तुत किया जाता है। इसके संवादों में गहराई होती है। यह सुव्यवस्थित, सृजनात्मक व आत्मनिष्ठ लेखन है, जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देने, शिक्षित करने के साथ मुख्य रूप से उनका मनोरंजन करना होता है। फीचर में विस्तार की अपेक्षा होती है। इसकी अपनी एक अलग शैली होती है। एक विषय पर लिखा गया फीचर प्रस्तुति विविधता के का...

शंखनाद

पूर्णसत्य तो युधिष्ठिर भी नहीं चाहते थे जिन्हें माना जाता था सत्यनिष्ठ वे राज़ी थे सुविधाजनक सत्य पर सत्य  सुविधाजनक हो तो आसानी से बदला जा सकता है असत्य से सत्य छिपाया जा सकता है शंख बजाकर घड़ियाल नगाड़े बजाकर उसके बाद कभी ज़िक्र नहीं होता सत्य का कथाओं में बची रहती है स्तुति शंख की बनी रहती है संभावना शंखों-नगाड़ों की जिसके पास होगा  शंख वह बदलता रहेगा सत्य को  असत्य से और एक दिन मान लिया जाएगा शंख ही सत्य है सत्य ही शंख है प्रो. हूबनाथ

KVS Vice Principal Exam Academic 2015 (Hindi medium)

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General Provident Fund MCQ

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