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फीचर लेखन

‘फ़ीचर’ (Feature) अंग्रेजी भाषा का शब्द है। इसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के फैक्ट्रा (Fectura) शब्द से हुई है। विभिन्न

शब्दकोशों के अनुसार इसके लिए अनेक अर्थ हैं, मुख्य रूप से इसके लिए स्वरूप, आकृति, रूपरेखा, लक्षण, व्यक्तित्व आदि अर्थ प्रचलन में हैं। ये अर्थ प्रसंग और संदर्भ के अनुसार ही प्रयोग में आते हैं। अंग्रेज़ी के फ़ीचर शब्द के आधार पर ही हिंदी में भी ‘फ़ीचर’ शब्द को ही स्वीकार लिया गया है। हिंदी के कुछ विद्वान इसके लिए ‘रूपक’ शब्द का प्रयोग भी करते हैं लेकिन पत्रकारिता के क्षेत्र में वर्तमान में ‘फ़ीचर’ शब्द ही प्रचलन में है।



फीचर का स्वरूप

समकालीन घटना या किसी भी क्षेत्र विशेष की विशिष्ट जानकारी के सचित्र तथा मोहक विवरण को फीचर कहा जाता है। इसमें मनोरंजक ढंग से तथ्यों को प्रस्तुत किया जाता है। इसके संवादों में गहराई होती है। यह सुव्यवस्थित, सृजनात्मक व आत्मनिष्ठ लेखन है, जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देने, शिक्षित करने के साथ मुख्य रूप से उनका मनोरंजन करना होता है।

फीचर में विस्तार की अपेक्षा होती है। इसकी अपनी एक अलग शैली होती है। एक विषय पर लिखा गया फीचर प्रस्तुति विविधता के कारण अलग अंदाज प्रस्तुत करता है। इसमें भूत, वर्तमान तथा भविष्य का समावेश हो सकता है। इसमें तथ्य, कथन व कल्पना का उपयोग किया जा सकता है। फीचर में आँकड़ें, फोटो, कार्टून, चार्ट, नक्शे आदि का उपयोग उसे रोचक बना देता है।

डॉ० सजीव भानावत का कहना है-“फ़ीचर वस्तुतः भावनाओं का सरस, मधुर और अनुभूतिपूर्ण वर्णन है।

"किसी स्थान, परिवेश, वस्तु या घटना का ऐसा शब्दबद्ध रूप, जो भावात्मक संवेदना से परिपूर्ण, कल्पनाशीलता से युक्त हो तथा जिसे मनोरंजक और चित्रात्मक शैली में सहज और सरल भाषा द्वारा अभिव्यक्त किया जाए, फ़ीचर कहा जाता है।"

फ़ीचर’ पाठक की चेतना को नहीं जगाता बल्कि वह उसकी भावनाओं और संवेदनाओं को उत्प्रेरित करता है। यह यथार्थ की वैयक्तिक अनुभूति की अभिव्यक्ति है। इसमें लेखक पाठक को अपने अनुभव से समाज के सत्य का भावात्मक रूप में परिचय कराता है। इसमें समाचार दृश्यात्मक रूप में पाठक के सामने उभरकर आ जाता है। यह सूचनाओं को सम्प्रेषित करने का ऐसा साहित्यिक रूप है जो भाव और कल्पना के रस से आप्त होकर पाठक को भी इसमें भिगो देता है।

फीचर व समाचार में अंतर


फीचर में लेखक के पास अपनी राय या दृष्टिकोण और भावनाएँ जाहिर करने का अवसर होता है, जबकि समाचार लेखन में वस्तुनिष्ठता और तथ्यों की शुद्धता पर जोर दिया जाता है।


फीचर लेखन में उलटा पिरामिड शैली का प्रयोग नहीं होता है। इसकी शैली कथात्मक होती है।


फीचर लेखन की भाषा सरल, रूपात्मक व आकर्षक होती है, परंतु समाचार की भाषा में सपाटबयानी होती है।


फीचर में शब्दों की अधिकतम सीमा नहीं होती। ये आमतौर पर 250 शब्दों से लेकर 500 शब्दों तक के होते हैं, जबकि समाचारों पर शब्द-सीमा लागू होती है।


फीचर का विषय कुछ भी हो सकता है, समाचार का नहीं।

फीचर के प्रकार

फीचर के प्रकार निम्नलिखित हैं-


समाचार फीचर


घटनापरक फीचर


व्यक्तिपरक फीचर


लोकाभिरुचि फीचर


सांस्कृतिक फीचर


साहित्यिक फीचर


विश्लेषण फीचर


विज्ञान फीचर

फीचर संबंधी मुख्य बातें


फीचर को सजीव बनाने के लिए उसमें उस विषय से जुड़े लोगों की मौजूदगी जरूरी है।


फीचर के कथ्य को पात्रों के माध्यम से बतलाना चाहिए।


कहानी को बताने का अंदाज ऐसा हो कि पाठक यह महसूस करे कि वे खुद देख और सुन रहे हैं।


फीचर मनोरंजक व सूचनात्मक होना चाहिए।


फीचर शोध रिपोर्ट नहीं है।


इसे किसी बैठक या सभा के कार्यवाही विवरण की तरह नहीं लिखा जाना चाहिए।


फीचर का कोई-न-कोई उद्देश्य होना चाहिए। उस उद्देश्य के इर्द-गिर्द ही सभी प्रासंगिक सूचनाएँ तथ्य और विचार गुंथे होने चाहिए।


फीचर तथ्यों, सूचनाओं और विचारों पर आधारित कथात्मक विवरण और विश्लेषण होता है।


फीचर लेखन का कोई निश्चित ढाँचा या फार्मूला नहीं होता। इसे कहीं से भी अर्थात् प्रारंभ, मध्य या अंत से शुरू किया जा सकता है।


फीचर का हर पैराग्राफ अपने पहले के पैराग्राफ से सहज तरीके से जुड़ा होना चाहिए तथा उनमें प्रारंभ से अंत तक प्रवाह व गति रहनी चाहिए।


पैराग्राफ छोटे होने चाहिए तथा एक पैराग्राफ में एक पहलू पर ही फोकस करना चाहिए।

फीचर लेखन के कुछ उदाहरण

* नेता द्वारा किए गए चुनाव प्रचार के दौरान ‘ चुनावी वायदा ' पर संक्षिप्त फीचर लेखन।

तलवारें म्यान में , योद्धा मैदान में

चुनाव आते ही नेता अपने क्षेत्र में प्रचार-प्रसार के लिए लग गए हैं। रोचक तरीके से वोटरों को लुभाने में जुटे हुए हैं। नेता एक – दूसरे के कमियों को उजागर कर अपना प्रचार – प्रसार कर रहे हैं।

आज रायगढ़ में उपस्थित ‘ जय भगवान ‘ जो वहां के वर्तमान सांसद हैं , उन्होंने अपनी जनता को पुराने सभी किए गए वायदे को छिपाने के लिए नए-नए वायदे किए। सांसद अभी तक वहां मूलभूत सुविधा उपलब्ध नहीं करवा पाए। वह फिर चुनाव को देखते हुए पुनः पुराने और नए वादे जो लोगों को लुभाने वाले हैं , उसे प्रस्तुत कर रहे हैं।

चुनावी वादे में मुख्य वायदे इस प्रकार हैं –


सड़क नाली बनवाना सभी के लिए।
एक – एक लैपटॉप कॉलेज विद्यार्थी को देंगे ।

धार्मिक स्थलों का निर्माण ।

गरीबों को घर।

कच्ची कालोनी को पक्का करके सुविधा को बेहतर करना।

सरकारी अस्पताल का निर्माण आदि।

नेताजी चुनावी वादे करके हंसी मजाक करते हुए वह अपनी गाड़ी में बैठे और वहां से रवाना हो गए। इस घटना को देखने के लिए वहां दर्शक जोकि कुछ अपनी श्रद्धा से आए थे और कुछ जबरदस्ती कुछ पैसे देकर लाए गए थे।वह नेता जी के आधे घंटे भाषण को सुनने के लिए 4 घंटे से बैठे हुए थे।

इस प्रकार की घटना केवल रामगढ़ ही नहीं अपितु पूरे देश में हो रही है। वोटरों को अब यह विचार करना होगा कि कौन सांसद उन्हें खोखले आश्वासन दे रहा है। और कौन विकास और उत्थान की बात करता है , अथवा कार्य करने में अपनी निष्ठा रखता है। अतः अब लोगों को अथवा वोटरों को ही यह विचार करना होगा। धर्म , जात – पात इन सबके बहकावे में ना आकर लोगों को अपना एक मजबूत व सुदृढ़ कर्मठ नेता चुनने की आवश्यकता है।

दक्षिण का कश्मीर-तिरुवनंतपुरम्

दक्षिण भारत में तिरुवनंतपुरम् को प्राकृतिक सुंदरता के कारण दक्षिण का कश्मीर कहा जाता है। केरल की इस सुंदर राजधानी को इसकी प्राकृतिक सुंदरता, सुनहरे समुद्र तटों और हरे भरे नारियल के पेड़ों के कारण जाना जाता है। आपको भी ले चलें इस बार तिरुवनंतपुरम् की सैर पर. भारत के दक्षिणी छोर पर स्थित तिरुवनंतपुरम् (जिसे पहले त्रिवेंद्रम के नाम से जाना जाता था) को अरब सागर ने घेर रखा है। इसके बारे में कहा जाता है कि पौराणिक योद्धा भगवान परशुराम ने अपना फरसा फेंका था जो कि यहाँ आकर गिरा था। स्थानीय भाषा में त्रिवेंद्रम का अर्थ होता है, कभी न खत्म होने वाला साँप।

एक ओर जहाँ यह शहर अपनी प्रकृतिक सुंदरता और औपनिवेशिक पहचान को बनाए रखने के लिए जाना जाता है, वहीं दूसरी ओर इसे मंदिरों के कारण पहचाना जाता है। ये सारे मंदिर बहुत ही लोकप्रिय हैं। इन सबमें पद्मनाभस्वामी का मंदिर सर्वाधिक प्रसिद्ध है। शाब्दिक अर्थ में पद्मनाभस्वामी का अर्थ है-कमल की सी नाभि वाले भगवान का मदिर। तिरुवनंतपुरम् के पास ही जनार्दन का भी मंदिर है। यहाँ से 25,730 किलोमीटर दूर शिवगिरि का मंदिर है जिसे एक महान समाज सुधारक नारायण गुरु ने स्थापित किया था। उन्हें एक धर्मनिरपेक्ष समाज सुधारक के तौर पर याद किया जाता है। शहर के बीचोंबीच एक पालयम स्थित है जहाँ एक मंदिर, मस्जिद और गिरजाघर को एक साथ देखा जा सकता है।

शहर के महात्मा गाँधी मार्ग पर जाकर कोई भी देख सकता है कि आधुनिक तिरुवनंतपुरम् भी कितना पुराना है। इस इलाके में आज भी ब्रिटिश युग की छाप देखी जा सकती है। इस मार्ग पर दोनों ओर औपनिवेशिक युग की शानदार हमरतें मौजूद हैं पब्लिक लाइब्रेरी, काँलेज आफ फाईन आर्ट्स, विक्टोरिया जुबिली टाउनहाल और सचिवालय इसी मार्ग पर स्थित हैं।

इनके अलावा नेपियर म्यूजियम एक असाधारण इमारत है, जिसकी वास्तु शैली में भारतीय और यूरोपीय तरीकों का मेल साफ दिखता है। यह म्यूजियम (संग्रहालय) काफी बड़े क्षेत्र में फैला है जिसमें श्रीचित्र गैलरी, चिड़ियाघर और वनस्पति उद्यान हैं। पर संग्रहालय में सबसे ज्यादा देखने लायक बात राजा रवि वर्मा के चित्र हैं। राजा रवि वर्मा का मुख्य कार्यकाल वर्ष 1848-1909 के बीच का रहा है। उनके चित्रों की सबसे बड़ी विशेषता हिंदू महाकाव्यों और धर्मग्रंथों पर बनाए गए चित्र हैं।

तिरुवनंतपुरम् कुछ वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थानों का भी केंद्र है, जिनमें विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर, सेंटर फॉर अर्थसाइंस स्टडीज और एक ऐसा संग्रहालय है जो कि विज्ञान और प्रोद्योगिकी के सभी पहलुओं से साक्षात्कार कराता है। भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान के प्रारंभिक प्रयासों का केंद्र थुबा यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है।

शहर का पुराना बाजार क्षेत्र चाला बाजार अभी भी अपनी परंपरागत मोहकता के लिए जाना जाता है। वाणकोर रियासत के दौरान जेवरात, कपड़े की दुकानें, ताजा फलों और सब्जियों की दुकानें और दैनिक उपयोग की वस्तुएँ यहीं एक स्थान पर मिल जाया करती थीं।

तिरुवनंतपुरम् दक्षिण भारत का बड़ा पर्यटन केंद्र है और देश के अन्य किसी शहर में इतनी प्राकृतिक सुंदरता, इतने अधिक मंदिर और सुंदर भवनों का मिलना कठिन है। यहाँ पहुँचना भी मुश्किल नहीं है। केरल राज्य की यह राजधानी जल, थल और वायु मार्ग से देश के सभी क्षेत्रों से जुड़ी है।

….बिन पानी सब सुन'

देश के सबसे अमीर स्थानीय निकाय बृहनमुबई नगर निगम (बीएमसी) को भी देश की आर्थिक राजधानी के बाशिंदों को पानी देने में हाथ तंग करना पड़ रहा है। बीएमसी पहले ही पानी की आपूर्ति में 15 फीसदी की कटौती कर चुका है और इस हफ्ते इस बात पर फैसला लेगा कि मुंबईवालों को हफ्ते के सभी दिन पानी दिया जाए या किसी एक दिन उससे महरूम रखा जाए। इस साल बारिश की बेरुखी से केवल मुंबई का हाल ही बेहाल नहीं है, बल्कि देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों में इस दफे पानी का रोना रोया जा रहा है।

शहरों का आकार जैसे-जैसे बड़ा हो रहा है पानी की उनकी जरूरत भी बढ़ती जा रही है। शहरों के स्थानीय प्रशासनों को पानी की लगातार बढ़ती माँग से तालमेल बिठने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। दिल्ली, भोपाल, चंडीगढ़, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई और बंगलुरू में से केवल बंगलुरू में ही हालात कुछ बेहतर है। इसकी सीधी सी वजह है वर्षा जल संरक्षण के मामले में देश की यह आईटी राजधानी दूसरे शहरों के लिए मिसाल है। वहीं दूसरे शहरों में खास तौर से दिल्ली में बैठे जिम्मेदार लोग बाहरी लोगों के दबाव को बदइंतजामी की वजह बताते हुए ठीकरा उनके सर फोड़ते हैं।

चेन्नई में अभी तक मीटर नहीं है। बारिश के पानी का इस्तेमाल करने के लिए मुंबई को अभी बंदोबस्त करना बाकी है। इन शहरों की नीतियों में भी पारदर्शिता की कमी झलकती है। बड़े शहरों में केवल बंगलुरू में ही 90 फीसदी मीटर काम कर रहे हैं, जबकि राष्ट्रीय राजधानी में केवल आधी आबादी की आपूर्ति ही मीटर के जरिए होती है। बीएमसी के अधिकारी कहते हैं कि निगम पानी की बर्बादी रोकने के लिए कदम उठा रहा है, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ होता नहीं नजर आ रहा है। देश में बड़े पैमाने पर भूजल का दोहन हो रहा है, लेकिन इंदौर को छोड़कर किसी अन्य शहर में भूजल के बेजा इस्तेमाल पर जुर्माना नहीं है। मध्य प्रदेश के इस प्रमुख वाणिज्यिक शहर में इस साल पानी के मामले में आपातकाल जैसे हालात हैं। पूरब के महानगर कोलकाता में भी पानी देने वाली हुगली नदी को नजरअंदाज किया जा रहा है।

बस्ते का बढ़ता बोझ

आज जिस भी गली, मोहल्ले या चौराहे पर सुबह के समय देखिए, हर जगह छोटे-छोटे बच्चों के कंधों पर भारी बस्ते लदे हुए दिखाई देते हैं। कुछ बच्चों से बड़ा उनका बस्ता होता है। यह दृश्य देखकर आज की शिक्षा-व्यवस्था की प्रासंगिकता पर प्रश्नचिहन लग जाता है। क्या शिक्षा नीति के सूत्रधार बच्चों को किताबों के बोझ से लाद देना चाहते हैं। वस्तुत: इस मामले पर खोजबीन की जाए तो इसके लिए समाज अधिक जिम्मेदार है। सरकारी स्तर पर छोटी कक्षाओं में बहुत कम पुस्तकें होती हैं, परंतु निजी स्तर के स्कूलों में बच्चों के सर्वागीण विकास के नाम पर बच्चों व उनके माता-पिता का शोषण किया जाता है। हर स्कूल विभिन्न विषयों की पुस्तकें लगा देते हैं। ताकि वे अभिभावकों को यह बता सकें कि वे बच्चे को हर विषय में पारंगत कर रहे हैं और भविष्य में वह हर क्षेत्र में कमाल दिखा सकेगा। अभिभावक भी सुपरिणाम की चाह में यह बोझ झेल लेते हैं, परंतु इसके कारण बच्चे का बचपन समाप्त हो जाता है। वे हर समय पुस्तकों के ढेर में दबा रहता है। खेलने का समय उसे नहीं दिया जाता। अधिक बोझ के कारण उसका शारीरिक विकास भी कम होता है। छोटे-छोटे बच्चों के नाजुक कंधों पर लदे भारी-भारी बस्ते उनकी बेबसी को ही प्रकट करते हैं। इस अनचाहे बोझ का वजन विद्यार्थियों पर दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।

महानगर की ओर पलायन की समस्या

महानगर सपनों की तरह है मनुष्य को ऐसा लगता है मानो स्वर्ग वही है। हर व्यक्ति ऐसे स्वर्ग की ओर खींचा चला आता है। चमक-दमक, आकाश छूती इमारतें, सब कुछ पा लेने की चाह, मनोरंजन आदि न जाने बहुत कुछ जिन्हें पाने के लिए गाँव का सुदामा’लालायित हो उठता है और चल पढ़ता है महानगर की ओर। आज महानगरों में भीड़ बढ़ रही है। हर ट्रेन, बस में आप यह देख सकते हैं। गाँव यहाँ तक कि कस्बे का व्यक्ति भी अपनी दरिद्रता को समाप्त करने के ख्वाब लिए महानगरों की तरफ चल पड़ता है। शिक्षा प्राप्त करने के बाद रोजगार के अधिकांश अवसर महानगरों में ही मिलते हैं। इस कारण गाँव व कस्बे से शिक्षित व्यक्ति शहरों की तरफ भाग रहा है। इस भाग-दौड़ में वह अपनों का साथ भी छोड़ने को तैयार हो जाता है। दूसरे, अच्छी चिकित्सा सुविधा, परिवहन के साधन, मनोरंजन के अनेक तरीके, बिजली-पानी की कमी न होना आदि अनेक आकर्षक महानगर की ओर पलायन को बढ़ा रहे हैं। महानगरों की व्यवस्था भी चरमराने लगी है। यहाँ के साधन भी भीड़ के सामने बौने हो जाते हैं। महानगरों का जीवन एक ओर आकर्षित करता है तो दूसरी ओर यह अभिशाप से कम नहीं है। सरकार को चाहिए कि वह विकास कोंगों में भ करे इना क्षेत्र में शिया स्वास्य पिरहान रोग आद की सुवथा हनेस पालन कि सकता हैं।

फुटपाथ पर सोते लोग

महानगरों में सुबह सैर पर निकलिए, एक तरफ आप स्वास्थ्य लाभ करेंगे तो दूसरी तरफ आपको फुटपाथ पर सोते हुए लोग नजर आएँगे। महानगर जिसे विकास का आधार-स्तंभ माना जाता है, वहीं पर मानव-मानव के बीच इतना अंतर है। यहाँ पर दो तरह के लोग हैं- एक उच्च वर्ग जिसके पास उद्योग, सत्ता, धन है, जो हर सुख भोगता है, जिसके पास बड़े-बड़े भवन हैं तथा जो महानगर के जीवनचक्र पर प्रभावी है। दूसरा वर्ग वह है जो अमीर बनने की चाह में गाँव छोड़कर आता है तथा यहाँ आकर फुटपाथ पर सोने के लिए मजबूर हो जाता है। इसका कारण उसकी सीमित आर्थिक क्षमता है। महँगाई, गरीबी आदि के कारण इन लोगों को भोजन ही मुश्किल से नसीब होता है। घर इनके लिए एक सपना होता है। इस सपने को पूरा करने के लिए अकसर छला जाता है यह वर्ग। सरकारी नीतियाँ भी इस विषमता के लिए दोषी हैं। सरकार की तमाम योजनाएँ भ्रष्टाचार के मुँह में चली जाती है और गरीब सुविधाओं की बाट जोहता रहता है।

राहुल कुमार तिवारी
पीजीटी हिन्दी
केन्द्रीय विद्यालय तूरा

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