पूर्णसत्य तो
युधिष्ठिर भी नहीं चाहते थे
जिन्हें माना जाता था
सत्यनिष्ठ
वे राज़ी थे
सुविधाजनक सत्य पर
सत्य
सुविधाजनक हो
तो आसानी से
बदला जा सकता है
असत्य से
सत्य
छिपाया जा सकता है
शंख बजाकर
घड़ियाल
नगाड़े बजाकर
उसके बाद
कभी ज़िक्र नहीं होता
सत्य का
कथाओं में बची रहती है
स्तुति शंख की
बनी रहती है संभावना
शंखों-नगाड़ों की
जिसके पास होगा
शंख
वह बदलता रहेगा
सत्य को
असत्य से
और एक दिन
मान लिया जाएगा
शंख ही सत्य है
सत्य ही शंख है
प्रो. हूबनाथ

बहुत बढ़िया!!!
ReplyDeleteअति सुंदर 👌👌
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