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चकाचौंध की दुनिया

चकाचौंध की दुनिया

 


 

घुल गया है ज़हर 

 चकाचौंध की दुनिया में

जहां हर चेहरा एक राजदार है और उसकी सोच 

उतनी ही धारदार है 

इस दुनिया की रेल- पटरी से  ड्रग्स, चरस, गांजा और अफ़ीम 

की न जाने कितनी गाड़ियां सुबह से पूरी रात तक निर्विघ्न दौड़ती रहती हैं 

और उसे अंतिम स्टेशन तक

पहुंचाने की सम्पूर्ण जिम्मेदारी

 उन सुरक्षाकर्मियों के कन्धों पर है जिनके पेट की धधकती जठराग्नि की लपट को 

 नहीं बुझाया जा सकता

बिना आत्मविक्रेता हुए

 वैसे रेल की पटरियां

 अपने देश में

 मुगलसराय रेलवे ब्रिज 

   के नीचे से सुदीर्घ यात्रा 

करती हैं

         एवं 

 रेल की समय- तालिका से पूर्व

इन गाड़ियों को पहुंचाने का उत्तरदायित्व उन 

गार्ड और ड्राइवर को ही है 

जो हरे कपड़ों की अपेक्षा अपने मुंह पर काले रूमाल बांधे हुए हैं

और ठीक 

 पुल के नीचे ही चूल्हे की लौ की मद्धिम रोशनी दिखलाई पड़ती है 

 अनवरत जलती रहे यह लौ

इसकी पूरी ज़वाबदेही 

खानाबदोश स्त्रियों के हिजड़ों जैसे मर्दों की ही है 

जिसमें वे निरंतर नाकाम हैं।

इस विकासशील देश में यह भी एक दर्शनीय तस्वीर है

जिसे नग्न आंखों से प्रतिदिन हम लोग देखते हैं 

नजरअंदाज भी करते हैं 

और कामेन्द्रियों की मेड़ों को 

वासनात्मक जल तोड़ देता है जब 

 तो ठीक सूर्यास्त के बाद 

वारूणी की एक बोतल के साथ 

मुगलसराय ब्रिज के नीचे 

उन खानाब़दोश महिलाओं के चूल्हे की लौ न बुझने की राष्ट्रीय जिम्मेदारी अपने कंधे पर लेते हुए उस दर्शनीय तस्वीर के किसी कोने में अपनी हया को एनस्थीसिया देते दिखाई पड़ जाते हैं हम लोग भी

 

 

डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

फूलपुर प्रयागराज

7458994874


 

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