खौल रहा है
भीतर का ख़ून
क्योंकि नहीं बना पानी
बन जाता पानी
तो मृतप्राय सरीखे हो
जाती सारी समस्याएं
जो विचारों के पैरों को
रोकती है निरंतर
मंदिर और मस्जिद
में जाकर सजदा करने से
और ले जाती हैं
दूर पहाड़ों तक
जिसकी देह से
स्राव हो रहा है
आज भी रक्त का
हरे हैं जख़्म आज भी
क्योंकि अंधी दौड़ में
प्रतिस्पर्धी मानव ने
ख़ूब नहाया
और इतना नहाया कि
उसकी परछाईं के भय ने
तोड़ दिया दम
और निहारता हूं
जब सूर्य की लालिमा में उसको
तो सुनाई पड़ती है
भयानक चींखें
मेरे कानों में
शायद खौल रहा है
खून उसका
नहीं बन पाया पानी आज भी
सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874
👍
ReplyDeleteNice line
ReplyDeleteJai ho
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