रिश्ता गहरा
तुम्हारा हमारा
एक अटूट प्रेम
हममें तुममें
कभी हंसते थे
खिलखिलाते थे
मीठी- मीठी बातें
बतियाते थें
मर मिटते थे
एक दूसरे पर
लहलहाता था
जंगल कभी
क्या नहीं
न्योछावर किया
मैंने तुम्हें!
फल, फूल, पशु, पक्षी
चिर शांति सब कुछ
नहीं छिपाया तुमसे कुछ
अटूट नाता रहा है
तुमसे हमारे पुरखों का
हे भद्र!
मत काटो
मत उजाड़ो
विश्वास करो मेरा
पल रही भू-गर्भ में
बाल रत्न तक
दे दिया मैंने
लूट जाने में
मैंने तलाशा है सुख
नहीं छला है तुम्हें कभी
नहीं लगायी बिंदी
बेवफ़ाई की
अपने माथे पर
मत उजाड़ो तुम मुझे!
मत काटो
इन निहत्थे पेड़ों को
मत बरगलाओ
हमारे भाइयों को
विकास के नाम पर
मत साधो स्वार्थ
तकनीक के नाम पर
कहते हो कि
खोदनी है ख़ान कोयले की
बनाने हैं कारखाने
मिटा दो वजूद इनका
कौन सा इजाद
करने आए हो
कुछ भी नहीं लगता
तुम्हारे बिना अच्छा
क्या करना चाहते हो हासिल ?
नाम पर प्रगति के
किस दिशा में देश को
ले जाना चाहते हो
नहीं एक बार फिर
करता हूं प्रार्थना तुमसे
नथ मत उतारो
सिंधु- सेज पर
बैठी हुई धरा- वधू का
साथ- साथ
इन भोले- भाले
मेरे अपनों को
मत बनाओ गुलाम!
नहीं! मैं समझ गया
नहीं आदमी हो
तुम इस दुनिया के
निष्ठुरता के बजबजाते
पनारे में तैरने वाले
एक हृदयहीन कीड़े हो तुम
क्योंकि
पोषक हो तुम गुलाब के
शोषण किए हो सदियों से
मुझे जैसे
जंगल के खाद का
नहीं तुम आदमी नहीं
आदमी की खाल में
एक खूंखार भेड़िए हो!
सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874
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