फिर बहार आयेगी
तम की रजनी छंट जायेगी
आज मौत सहन में खड़ी है
ज़िंदगी से दो- दो हाथ लड़ पड़ी है
हिम्मत से काम लो यारों
जीवन में जूझना है प्यारों
इस कदर हार जाओगे
तो दुर्धर्ष योद्धा कैसे बन पाओगे
मानाकि विजय कोसों दूर है
लेकिन हौंसले में भी नूर है
काल को भी पथ बदलना होगा
अपने चक्र की दिशाको मोड़ना होगा
खुशियां कल अपना फूल खिलाएंगी
ज़िंदगी के चमन में फिर बहार आयेगी।।
सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874

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