मानती है
सफल अपने प्रसव को
सत्ता
लंगड़ा, अंधा और बहरा
जब उसकी कोख से
जन्मते हैं
एवं
चलते हैं ताउम्र
दिए हुए उसकी बैसाखी पर
देखते हैं चश्में से उसी के
सुनते हैं सिर्फ़ वही ध्वनि
जो सुनाना चाहती है
जिस दिन
चलने लगे अपनी चाल
राजपथ पर वह
देखने लगे
अपनी आंखों से
राजसिंहासन के चौपायों को
छोड़ दे सुनना उस ध्वनि को
जो निकली हो सत्ता के रनिवास से
उस दिन घोंट देती है गला
अपने ही आत्मीयजन का
क्योंकि पसंद है
बांझिन रहना उसे
लेकिन नहीं पसंद है कि
लेकर सहारा
ममता की आंचल का
दिखा दे एकांतिक पथ
सत्ता से सड़क का
सम्पूर्णानंद मिश्र
फूलपुर प्रयागराज
7458994874

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