हाड़ मांस से
ही बने हुए थे
हमारे पुरखे
हमीं लोगों की तरह
भिन्न नहीं थे
हवाई यात्रा तक नहीं की थी
अधिकांश ने इनमें से
कई तो शहर के
सूर्य को देखे बिना ही
देवलोक चले गए
हां भिन्नता थी
हममें और उनमें
जहां हमारी कमीजें
कृत्रिम इत्र
की खुशबू से
आभिजात्य होने का
झूठा दर्पण दिखाती हैं
वहीं उनकी बंडी से
मानवता के इत्र की
खुशबू निकलकर
उनके देवत्व का दर्शन कराती थी
कांटे जहां बिछा रखे हैं
नफ़रत के हम लोगों ने
प्रेम के फूल लिए हुए थे
अपने हृदय की डलिया में वहीं वे
जहां हम लोग दूसरों के
सुख- रस में
ज़हर का रूहआफ़जा मिलाते हैं
वहीं वे दु:ख में
लोगों के हिम्मत
और धैर्य की शर्करा मिलाते थे
जहां हम भटके हुए
लोगों को और भटका देते हैं
वहीं वे अंधकार आंखों को
एक अदद उम्मीदों की
रोशनी दिखाते थे
क्या- क्या गिनवाऊं
क्या-क्या बतलाऊं दोस्तों
हमारे पुरखे आदमी ही थे
हमीं लोगों की तरह
लेकिन वो आदमी नहीं
आदमी के वेश में फ़रिश्ते थे
सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874
Nice lines
ReplyDeleteNice lines
ReplyDeleteसत्य वचन
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