वृहद सुख की कामना
मन में लिए
घूम रहा है मनुष्य इधर- उधर
उस मृग की तरह
छद्माभास जिसे होता है अनवरत
छद्माभास
एक गंभीर रोग है नज़र का
जिसके ताने- बाने को
सत्ता और संपत्ति ने ही बुना है
निरंतर सिलता है
सत्ता और संपत्ति
अहंकार के ही परिधान को
भटक रहा है सदियों से इंसान
इसीलिए इसे धारण कर
नरक का पथ निर्मित होता है अहंकार से
क्योंकि इस दोष से नहीं बच सके हैं बड़े- बड़े संन्यासी
इसीलिए नहीं चख सके
समता के फल के स्वाद को
क्योंकि
समता के फल का स्वाद
मिलता है उन्हीं को
जिन्होंने अहंकार के
वृहदाकार खोह को
प्यार की मिट्टी से पाटा हो
देश के कुछ संतों ने पाटा था इसे
चख सके इसीलिए
समता के फल के
मीठे स्वाद को वे
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874
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