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क्या सब कुछ बदल जायेगा


 

अपने गर्भ में 

तारीख महीनों को पाल रहा

 कैलेंडर जनेगा 

एक और नया साल

जिसकी रेखा की बुनियाद पर 

 भविष्यवक्ताओं का 

भविष्य टिका है 

तो क्या यह मान लिया जाय 

यह बदलाव का वर्ष होगा

सब कुछ बदल जायेगा 

दिलों पर लगा 

ज़ख्म सूख जायेगा

जो उग आया है 

नागफनी की तरह 

जिसने सीखा है पनपना 

 विश्वास है विस्तार में जिसका

नहीं उसने सीखा 

संसर्ग में रहकर भी

 चिरकाल तक

 दौड़ता रहा अंधी दौड़ 

हर बार हारता रहा 

बावजूद उसे कुचलता रहा 

उसे परम विश्वास था 

इस बात का छद्म एहसास था

कि नहीं हो सकता 

वह मेरा प्रतिस्पर्धी 

     क्योंकि 

इस कंगूरे की चमक 

के लिए कितनी मांगों

 का सिंदूर मैंने पिया है 

और कितनी सिसकियों 

 की सीढ़ियों पर चढ़कर

 अवस्थित हूं आज मैं 

वह निरीह लाचार 

कमठ क्या जाने 

यह सब कुछ

एक अंतहीन प्रश्न 

नववर्ष के जश्न में 

आकंठ और आकर्ण डूबे 

लोगों से पूछना चाहता हूं कि

क्या सब कुछ बदल जायेगा 

दो दिन बाद ?



डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

प्रयागराज फूलपुर

745899487

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