हत्यारों का
कोई रंग-रूप नहीं
कोई ढंग नहीं
कोई सगा नहीं
कोई मां- बाप नहीं
कोई बहन- भाई नहीं
ए धर्मांध होते हैं
जन्म से ही
नृशंसता के आंवें में
पकाया जाता है इन्हें
खूब पकाया जाता है
दोगले चरित्र का जामा
इन्हें पहनाया जाता है
क्रूरता का रंग चढ़ाया जाता है
जिस थाली में खाते हैं
उसमें छेद करने की कला में
ये निष्णात होते हैं
ए जानवरों की
सफ़ में भी बैठने लायक नहीं
जानवर बुद्धिमान होते हैं
विवेकी होते हैं
मनोरोगी नहीं होते हैं
सर्वधर्म समभाव होता है उनमें
सद्भावना के प्रतीक होते हैं
अकारण हमलावर नहीं होते
मनुष्यों से भयाक्रांत होते हैं
बच- बचाकर रहते हैं
किसी से विश्वासघात नहीं करते
ज़हर देकर किसी को मारने की सभ्य मानवी- संस्कृति के इतिहास को
कभी नहीं पढ़ा इन्होंने
इनकी परछाईं
देखकर भी छिप जाते हैं
ये जान गये
और इस बात को
अच्छी तरह मान गए
कि ये किसी वारांगना के नाजायज़ औलाद हैं
जो अनानासी घात से किसी भी
प्राणी के गर्भ में पल रहे बच्चे
और उसकी मां को
तड़पाते हुए मार सकते हैं
संपूर्णानंद मिश्र
Jai ho. 🌹🌹🌹🌹🌹👌👌👌👌👌🌹🌹🌹🌹🌹
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