एक सार्थक कविता प्राप्त
करने के लिए
बहुत रगड़ना पड़ता है
कंटकाकीर्ण मार्गों से
गुजरना पड़ता है
तलवों पर कुछ छाले लेकर
अपनी पीड़ा पीकर
आलोचनाओं की सरिता में
डुबकी लगाते हुए
बच्चों की एक अदद
फरमाइश लिए हुए
त्योरियां चढ़ाते हुए
मन में कुछ बुदबुदाते हुए
बूढ़े बाप की दवा लेकर
दफ्तर में बास की
झिड़कियों के क्रम को
रोज पीते हुए
थकित मन से शाम को
घर आना पड़ता है!
अच्छी कविता के लिए
बहुत रगड़ना पड़ता है।
इस
क्रम में कविता
क्या-क्या सहती है
कितनी मार पड़ती है!
भावनाओं की आंधी में
विचारों के बीजों को
समाहित की हुई
कल्पना के खादों को पीती हुई
शब्द - बीजों को
गलाती हुई
ताकि अर्थ की कोपलें फूट पड़ें
क्योंकि
एक सार्थक कविता
आसानी से नहीं मिलती
इस क्रम में शिल्पकार की
कितनी मार सहती है!
गलती है, मुठभेड़ करती है
तरह-तरह के
रंग -रूप बदलती है
कंटकाकीर्ण मार्गों से वह
निरंतर गुजरती है
तब एक कविता
सार्थक बनती है।
सम्पूर्णानंद मिश्र
Comments
Post a Comment