स्त्रियां रचनात्मक हैं
कोई गुरेज नहीं
कोई परहेज नहीं
संदेह नहीं
कभी रसोईघर में
कभी बासन धुलने में
कभी बच्चों की फटी हुई
किताबों की सिलाई में
कभी साड़ी की तुरपाई में
कभी आफिस जाते हुए
पति की कमीज़ को टांकते हुए
रचनात्मकता का बड़ा ही
लंबा इतिहास रहा है
भले ही इतिहास के पन्नों में
इनकी यह कला
बहुत उभर कर सामने न आई हों
फिर भी मलाल नहीं
संवैधानिक संस्थाओं ने नहीं नवाज़ा है इन्हें कभी !
स्त्रियां स्त्रियों
की ही शिकार होती हैं
कला परवान चढ़ती है तो
इनकी
रचनात्मकता की सफ़ा
को स्त्री द्वारा ही
कर्कश वाणी की स्याही से
नहला दिया जाता है
बदरंग कर दिया जाता है
फिर भी वह चुप हो जाती है
अपने काम में लग जाती है
जानती है
इस बात को मानती है
सूरज और चांद के ऊपर का थूक
अपने ऊपर ही गिरता है
इसलिए
न उसे कोई गिला है न शिकवा
अनवरत रचनारत रहती है
निष्काम कर्म करती है
बड़े-बड़े पुरस्कार
उसकी रचनात्मकता की
लंबाई नापने में आज तक
विफल रहे हैं
आजकल इस लाकडाउन में
असंख्य पुरुष भी
रचनात्मक हो गए हैं
ऐसी- ऐसी कविता लिख रहे हैं
आज काव्य- देबी भी रो रही हैं
अपने आंसुओं को
निरंतर पी रही हैं
लाकडाउन के बाद कई वैयाकरणों को बैठाकर इनकी कविताओं को सुधरवाना होगा
तभी
कविता चल सकती है
अपने पांव पर खड़ी हो सकती है
वरना
लंगड़ी हो जायेगी
लूली हो जायेगी
बेचारी इन नए-नए शिल्पियों के नए- नए प्रयोग एवं
मुहावरों के कारण
अपरिणीता ही रह जायेगी ।
संपूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज (फूलपुर)
mishrasampurna906@gmail.com
बहुत ही सटीक पंक्तियां
ReplyDeleteस्त्रियां सच मे बहुत रचनात्मक होती है। और उनकी रचनाओं की कोई सीमा नही।
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ReplyDeleteVery true
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