Skip to main content

कैमरे में कैद स्मृतियां


 जड़ से कटा मनुष्य
अपनी शिनाख़्त मिटा देता है
  लूट लिया जाता है 
  उसके स्वप्नों को
    जांगर को 
   निर्ममता और 
  नृशंसता की भट्ठी में 
 झोंक दिया जाता है
 सदा-सदा के लिए
    नए जीवन 
  की गुहार लगाता है
    पथरायी आंखों 
     की दरिया में 
   बापू के सपनों की नाव
    उम्मीदों की सिर्फ़ 
   एक किरणों के सहारे 
     चलाना चाहता है
   बेटियों सदृश दिखती
    लंबी भयानक 
     ग़रीबी की रात से
   छुटकारा पाना चाहता है
      लेकिन उसकी 
     उम्मीदों का गला
     रेत दिया जाता है
   कराहने गिड़गिड़ाने
   चिरौरी ‌करने के बाद भी
      किसी गटर में 
     उसके अरमानों को 
     फ़ेंक दिया जाता है 
      मजबूर वह मानव 
          रेंगते हुए
      अपनी पीड़ा को 
     शांत भाव से पीते हुए 
    पैरों से चू रहे मवादों को
 अपने निलय नि:सृत आंसुओं से
     प्रक्षालित करते हुए
   बापू की स्मृतियों को
आंखों के कैमरे में कैद करते हुए
अपनी गृहस्थी का भार समेटे हुए
किसी दैवीय चमत्कार की
      आशा में खड़ी 
प्रसवंती लुगाई का हाथ थामे
टूटे हुए मन से खड़ा होता है
  अपने गांव आता है 
 और शाखा बनकर 
  फिर अपने जड़ों से 
   जुड़ जाना चाहता है 
   क्योंकि जड़ कटा मनुष्य
 अपनी शिनाख़्त मिटा देता है!

संपूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज (फूलपुर)
7458994874

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

नया साल ! क्या सचमुच नया है ?

31 दिसम्बर की रात, पूरा माहौल रंगीन और जश्न में डूबा है। उत्तेजना बढ़ती जाती है और इकतीस दिसंबर की आधी रात हम सोचते हैं कि पुराना साल रात की सियाही में डुबोकर कल सब कुछ नया हो जाएगा। यह एक रस्म है जो हर साल निभाई जाती है, जबकि हकीकत यह है कि दिन तो रोज ही नया होता है, लेकिन रोज नए दिन को न देख पाने के कारण हम वर्ष में एक बार नए दिन को देखने की कोशिश करते हैं। दिन तो कभी पुराना नहीं लौटता, रोज ही नया होता है, लेकिन हमने अपनी पूरी जिंदगी को पुराना कर डाला है। उसमें नए की तलाश मन में बनी रहती है। तो वर्ष में एकाध दिन नया दिन मानकर अपनी इस तलाश को पूरा कर लेते हैं। यह सोचने जैसा है जिसका पूरा वर्ष पुराना होता हो उसका एक दिन नया कैसे हो सकता है? जिसकी पूरे साल पुराना देखने की आदत हो वह एक दिन को नया कैसे देख पाएगा? देखने वाला तो वही है, वह तो नहीं बदल गया। जिसके पास ताजा मन हो वह हर चीज को ताजी और नई कर लेता है, लेकिन हमारे पास ताजा मन नहीं है। इसलिए हम चीजों को नया करते हैं। मकान पर नया रंग-रोगन कर लेते हैं, पुरानी कार बदलकर नई कार ले लेते हैं, पुराने कपड़े की जगह नया कपड़ा लाते हैं। हम...

Teachers day शिक्षा व्यवस्था बनाम शिक्षा

कोई भी व्यक्ति ठीक अर्थों में शिक्षक तभी हो सकता है जब उसमें विद्रोह की एक अत्यंत ज्वलंत अग्नि हो। जिस शिक्षक के भीतर विद्रोह की अग्नि नहीं है वह केवल किसी न किसी निहित, स्वार्थ का, चाहे समाज, चाहे धर्म, चाहे राजनीति, उसका एजेंट होगा। शिक्षक के भीतर एक ज्वलंत अग्नि होनी चाहिए विद्रोह की, चिंतन की, सोचने की। लेकिन क्या हममें सोचने की अग्नि है और अगर नहीं है तो आ एक दुकानदार हैं। शिक्षक होना बड़ी और बात है। शिक्षक होने का मतलब क्या है? क्या हम सोचते हैं- सारी दुनिया में सिखाया जाता है बच्चों को, बच्चों को सिखाया जाता है, प्रेम करो! लेकिन कभी  विचार किया है कि पूरी शिक्षा की व्यवस्था प्रेम पर नहीं, प्रतियोगिता पर आधारित है। किताब में सिखाते हैं प्रेम करो और पूरी व्यवस्था, पूरा इंतजाम प्रतियोगिता का है। जहां प्रतियोगिता है वहां प्रेम कैसे हो सकता है। जहां काम्पिटीशन है, प्रतिस्पर्धा है, वहां प्रेम कैसे हो सकता है। प्रतिस्पर्धा तो ईर्ष्या का रूप है, जलन का रूप है। पूरी व्यवस्था तो जलन सिखाती है। एक बच्चा प्रथम आ जाता है तो दूसरे बच्चों से कहते हैं कि देखो तुम पीछे रह गए और यह पहले आ ...

Online MCQ test Vachya वाच्य

Loading…