योग में वियोग में
राग में विराग में
रोग में निरोग में
दिन में रात में
लघु में विराट में
खाट में पर्यंक में
प्राची में प्रतीची में
प्राच्य में पाश्चात्य में
देव में दानव में
स्वाद में अस्वाद में
अनुकूल में प्रतिकूल में
जीवन में मरण में
लाभ में हानि में
यश में अपयश में
निंदा में स्तुति में
राजा में रंक में
लोक में परलोक में
स्वर्ग में अपवर्ग में
छोह में विछोह में
सुख में दुःख में
जय में पराजय में
सृजन में संहार में
जन में विजन में
सुकृत में विकृत में
नीर में छीर में
संस्कृति में विकृति में
हीर में पीर में
धीर में अधीर में
आकाश में पाताल में
जिसकी बुद्धि स्थिर है
वही प्राज्ञ है
वही स्थित प्रज्ञ है।
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
7458994874
email mishrasampurna906@gmail.com
👌👌
ReplyDeleteNice poem👌👌
ReplyDeleteजीवन की सार्थकता की परिष्कृत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteNice lines
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