मनुष्य जब सुख भोगता है
तब वह
रात- दिन उछलता है
कूदता है
मिथ्या प्रर्दशन करता है
अपना वैभव दिखाता है
अपनी लंबी- लंबी फेंकता है
किसी की नहीं सुनता
अपना ही गुनता है
अपनी ही राम- कथा कहता है
किसी से राम-राम नहीं करता !
लोगों के प्रशंसनीय कार्यों पर भी
राम राम राम कहता है !
अहं दिखाता है
अपनी
वाणी से लोगों को
चोट पहुंचाता है
धैर्य और संयम से
काम नहीं लेता
लोगों के जज़्बातों
से खेलता है
उन्हें रुलाता है
एक नया सुख पाता है
लेकिन जब वह गिरता है
तो खीज़ता है
टूटता है
चिल्लाता है
करुण क्रंदन करता है
आसमान सिर पर उठाता है
अपनी हार का दोष
दूसरों पर मढ़ता है
उस अहमक को
कुछ नहीं मालूम
जिस तन पर इतराता है
वह भी उधार का है
कब तक रहेगा
कुछ नहीं पता
फिर भी अपना अभिमान
निरंतर वह सेंकता है !
अगर वह संयम से काम ले
अपने स्व से अभिज्ञ हो जाय
और पूरी तरह से
अपने दर्प को गला दे
तो हर बिगड़े हुए रिश्ते को
भी सुधार सकता है
पूरी कायनात को अपना
बना सकता है
सारे रंजोगम भूलकर
सभी लोग उसे भी
गले लगा सकते हैं ।
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
स्नातकोत्तर शिक्षक हिंदी
केन्द्रीय विद्यालय इफको फूलपुर
इलाहाबाद ( प्रयागराज)
Exactly sir
ReplyDeleteBilkul sahi likha hai sir
ReplyDeleteNice
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