संकल्पों से भरा जीवन
विपदाएं तराशती हैं
मनुष्य को मनुष्य
बनाने की उत्तम
कला सिखलाती हैं
बाधाएं जब-जब
प्रसंवती हुई हैं
तब-तब
आत्मबल को जनी हैं
संकल्प की कलियों को कभी
सूखने नहीं देती
उसमें जनकल्याण के
रस भर देती हैं
तन भले ही कमजोर हो
पर मन पुरजोर हो
सतत संकल्प दृढ़ होता है
मन में अक्षय विश्वास
जागृत होता है
ऋग्वेद भी कहता है
संकल्प की परिभाषा
स्वयं गढ़ता है
संकल्प शुभ और कल्याणमय हो
(तन्मे मनः शिव संकल्पमस्तु)
अनवरत भावमय हो
तब उद्देश्य का निर्धारण होता है
ऐसा जीवन में होता है
जब
संकल्पित व्यक्ति
तब अर्जुन सदृश
साधारण नहीं असाधारण होता है।
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
7458994874
email - mishrasampurna906@gmail.com
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